SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भूमिका सुल्तान दोनों पुत्र हाजी खाँ तथा बहराम खाँ के साथ विजयेश्वर से प्रस्थान कर, तीन दिनों की यात्रा पश्चात् क्रमसर पहुँचा। (१:५:९५-९६) उसने धीवरो द्वारा चालित नौका पर श्रीवर तथा सिंह भट्ट को लेकर सरोवर (१:५:९९) तटपर, नौका बाँधकर, आगम से सिद्ध नौ बन्धन गिर का साक्षात्कार किया। (१:५:१०५) सुल्तान कुमार सर तक पहुंचा। (१.५:१०६) नौ बन्धन की तीर्थ यात्रा समाप्त कर, श्रीनगर लौट आया। (१.५:१०८) जोनराज ने सुल्तान जैनुल आबदीन के शारदी, बिजयेश्वर, बारहमूला तीर्थ स्थानों की यात्रा का विस्तृत विवरण लिखा है। मूल्यांकन : श्रीवर शाहमीर वंश के सुल्तानों का स्वयं मूल्यांकन करता है । वह आज भी सत्य है-'शेसदीन (शाहमीर) नयज्ञ (नीतिज), अलाभदीन (अलाउद्दीन) मन्त्री, शाहाबुद्दीन (शिहाबुद्दीन) विवेचक था। (३:२६४) श्री सेकन्धर (सिकन्दर वुत शिकन) यवन धर्म प्रेमी और अलीशाह दाता हुआ। (३:२६५) श्रीमान् जैनुल आबदीन भूपति सर्वशास्त्र प्रेमी तथा सर्वभाषा के काव्यों में विचक्षण था। राजा हैदरशाह वीणा एवं मन्त्री वाद्य विशारद था। (३:२६६) राजा हस्सनेन्द्र (हसन) संगीत में निपुण था। इस प्रकार एक-एक गुण से पूर्ण प्रसिद्ध नृप मण्डली को लोगों ने इस मण्डल में देखा।' (३:२६७) महिलाओं का स्थान : कल्हण ने महिलाओं को पुरुषों के समकक्ष स्थान दिया है। वे राजाओ की अभिभावक थी। सिंहासन को सुशोभित करती थी। कल्हण उन्हें आदर की दृष्टि से देखता है। वे पुरुषों के साथ सर्वत्र उत्सवों में भाग लेती थी। स्वजातीय विवाह प्रचलित था। परन्तु विजातीय विवाहो को मान्यता दी जाती थी। प्रारम्भिक मुसलिम काल में जोनराज के अनुसार हिन्दू एवं मुसलमानों मे विवाह सम्बन्ध होता था। हिन्दू मुसलिम कन्या नहीं ग्रहण करते थे। मुसलमान हिन्दू कन्याओं से विवाह करते थे । जैनुल आबदीन के पश्चात् हिन्दुओ में जाति बन्धन कठोर होता गया । अतजातीय विवाह प्रथा समाप्त हो गयी। विवाह दूतों अथवा सम्बन्धियों के माध्यम से होता था। मुसलमानों में विवाह के समय पत्र लिखा जाता था। हिन्दुओं मे विवाह संस्कार तथा पत्र भी लिखा जाता था। हिन्दुओ ने अपनी प्रथा कायम रखते हुए, मुसलमानी प्रथा भी स्वीकार कर लो थी। हिन्दू और मुसलमान दोनों की वरयात्रा होती थी। (१:१६४) विवाह उत्सव होता था। (३:२७०) वारात आती थी। धूम-धाम तथा भोज-भात होता था। हिन्दुओं में स्त्री परित्याग किंवा तलाक प्रथा नही थी। मुसलमानों में तलाक प्रथा प्रचलित थी। तलाक के समय परित्याग चीरिका लिखी जाती थी। जैनुल आबदीन के पश्चात् महिलायों का स्थान पीछे हटता गया। राज कुल का विवाह सैयिदों तथा विदेशी मुसलमानों मे होने लगा। मुसलिम स्त्रियाँ नियमों एवं विधियों का कठोरता पूर्वक पालन करती थी। अतएव महिलाओं का उल्लेख नहीं मिलता । सुल्तानों की कन्याओं के नाम का पता भी नही चलता । केवल सैयद वंशीय वोधा, हयात खातून तथा मोमरा खातून का उल्लेख मिलता है। वे सैयिद वंशीय रानियाँ थीं। उनका वर्णन श्रीवर ने प्रासादीय षणयन्त्रों तथा प्रतिष्ठाओं के प्रसंग में किया है। उत्तर मुसलिम काल मे महिलाओं की स्वतन्त्रता लुप्त हो गई थी। __कुछ गायिका तथा नृत्य करने वाली स्त्रियों का नाम अवश्य श्रीवर देता है। परन्तु वे पेशेवर हैं। उनका कुलीन समाज में कोई स्थान नहीं था । हिन्दुओं में सती प्रथा का लोप हो गया था।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy