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________________ (६८ ) ४।६५-५२९२०००००००००००००००० बहुरि नंबूद्वीपते लगाय पुष्कराध पर्यंत " दोद्दोवगा " इत्यादि चंद्रादिकका प्रमाण कह्या २।४।१२। ४२ । ७२ तिनको मिलाएं एकसौ बत्तीस भए । बहुरि मानुषोत्तर पर्वत पर्यंत पर पुष्कराध द्वीपवियें चंद्रमानिका प्रमाण त्यावनकों कहैं हैं। पदमेगेण विहीणं दुभाजिद उत्तरेण संगुणिदं ।। पभवजुदं पदगुणिदं पदगणिदं तं वियाणाहि ॥ १ ॥ इसकरण सूत्रकरि इहां वलय पाठ है । तात गच्छका प्रमाण आठ तामैं एक घटाइए ७ ताका आधाकारि - उत्तर नो वलय वलय. प्रति वतीका प्रमाण च्यारि तिहकरि गुणिए । ४ अपवर्तन करिए. तब चौदह भए १४ इनविर्षे प्रमव जो प्रथम वलयवि प्रमाण रूप मुख एक सौ चवालीस जोडिए १५८ । बहुरि इनकी गच्छ पाठकरि गुणिए तव वारहसौ चौसाठि भए इनविर्षे एकसौ वत्तीस नबूद्वीप आदिकके मिलाएं तेरहसै छिनवै होइ सो इनकों जो पूर्व ऋण संकलित धन भया था तिनमैं घटाइए हैं। जात-'ऋणस्य ऋण राशेद्धनं इसवचनकरि ऋणमस्यों घटावनां अर राशिम मिलावनां इन दोऊनिका एक अर्थ है। तहां ऋण संकलित धनसहित तेरहसै छिनबैका समच्छेद करिए तव ऐसा होइ- १३९६ सू २१७६८००० १ ल ६४। ७ । १ । सू २ । ७६८००० । १ ल । ६४ । ७ | १ सो यह गुणकार भागहारादिकका अपर्वतनादिक किएं भाज्य राशिकौं परस्पर गुणे संख्यात सूच्यंगुलप्रमाण भया । सो इनकों पूर्वोक्त ऋण संकलित धनका भाज्यविर्षे घटाइए तव ऐसा भया । २।७६८००० । १ ल।७। ६४।१ इहां संख्यात सृच्यंगुलकी सहनानी ऐसी २ जाननी । पर सारौं घटा
SR No.010018
Book TitleJain Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankar P Randive
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year1931
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size7 MB
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