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________________ (५५) दलिदे पुण तदणंतरसापरमज्यंतरत्थवेदीदो ॥ पडदि सदलचरणण्णिदपण्णत्तरिदसस्यं गत्ता ॥ ३५५ ॥ दलिते पुनः तदनंतर सागरमध्यांतरस्थवेदीतः || पतति स्वदलचरणान्वितपंचसप्ततिदशशतं गत्वा ॥ ३५५ ॥ अर्थ - बहुरि ताको आधा किएं ताके अनंतरि अहिंद्रवर नामा समुद्रकी वेदिकातें परे अपना आधा अर चौथाईकरि संयुक्त पिचहतरि दश सैकडां- - प्रमाण योजन जाई सो राजू पडे है । संदृष्टि तीसरीचार 'आधा किया खण्ड पंद्रह लाख बासठि हजार पांचसै १५६२५०० ताक आधा किएं सात लाख इक्यासीहजार दोयसै पचास योजन होत संत तिस स्वयंभूरमण द्वीपके अनंतरि अहिंद्रवरनामा समुद्र ताका अभ्यंतर तटतें परे तिससमुद्रविषै पिचहतरि दश सैकडाका विचहत रिहजार भएताका आधा सादा सैतीस हजार भर चौथाई पौणा उगणीस हजार इनकों मिलाएं एक लाख इकतीस हजार दोयसै पचास १३१२५० भए । सो इतने योजन जाइ सो राजू पडै है || ३५५ || इदि अभवरतडदो सगदलतुरियहमादि संजुत्तं ॥ पण्णत्तरि सहस्सं गंतून पडेदि साताव || ३५६ ॥ इति अभ्यन्तरतटतः स्वकदलतुर्याष्टमादि संयुक्तं ॥ पंचसप्ततिसहस्रं गत्वा पतति सा तावत् ॥ ३५६ ॥ अर्थ - ऐसेडी अभ्यन्तर तटतें अपनां अर्ध चौथाभाग आदि संयुक्त पिचहत्तर हजार योजन नाइ नाइ सो राजू तावत् पडे है । तहाँ · - चौथी बार आधा किए अहिंद्रवर नाम द्वीपका अभ्यंतर तटतैं अपना आधी ३७५००० चौथाई १८७५० अष्टमांस ९३७५ करि संयुक्त पित्रहतरि ७५००० हजार योजन ४०६२५ नाइ एक पडै है बहुरि पांचईबार - आधा किं तातै पिछला समुद्रकी अभ्यन्तर वेदीतें अपनां चौडाई अष्टमांश - सोल्वा अंशकरि संयुक्त पिनहत्तर हजार योजन पर
SR No.010018
Book TitleJain Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankar P Randive
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year1931
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size7 MB
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