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________________ निदर्शनं साध्यसाधनविकलमित्यपि न मन्तव्यं ताकार्यस्यांकरादेविभागवतः प्रतीतेः, क्षित्यादेश्च द्रव्यतो भाव-श्व विभागवत्व'सद्धेति सूक्तं विभागरहिते हेतौ विभागो न फले कचित्" इति ।। ॥ पहिरवस्थिताः ॥ १५ ॥ ( श्रीउमास्वामि) किमनेन सूत्रेण कृतमित्याहबहिर्मनुष्यलोकात्तवस्थिता इति सूत्रतः ॥ तत्रासन्नाव्यवच्छेदः प्रादक्षिण्यमतिक्षतिः ॥ १ ॥ कृतेति शेषः । एवं सूत्रचतुष्टयाज्ज्योतिषामरचिंतनम् ॥ निवासादिविशेपेण युक्तं बाधविवर्जनातूं ॥ २ ॥ .......... त्रिलोकसार श्रीन्नेमिचंद्र सैद्धान्तिक विरचित . . त्रिलोकसार अध्याय तृतीय-" ज्योतिलोकाधिकार प्रतिपादन अधिकार" हिंदीभाषा अनुवादकार स्वर्गीय पं० प्रवर श्रीटोडरमल्लजी छा. पु. पृ. १४१-२०४ ॥ तहां तारादिकनिका स्थितिस्थान तीन गाथानि करि कहै हैंणउत्तर सत्त सए दससीदी चदुदुगे तिय चउके । तारिणमसिरिक्खवुहा सुकगुरंगारमंदगदी ॥ ३३२॥ . . नवत्युसर सप्तशतानि दश अशीतिः चतुद्विके त्रिकचतुष्के । ... .. तारेनशशिऋक्षयुधा शुक्रगुर्वगारमंदगदयः ।। ३३२ ॥ ..
SR No.010018
Book TitleJain Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankar P Randive
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year1931
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size7 MB
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