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________________ ( २४ ) की संख्या एकसौ यारा है । अर ग्रहनिको प्रमाण तीनसँ बावन है । अर तारानिको प्रमाण दोय लाख कोटाकोटि भर सडसठि हनार कोटाकोटि भर नबसे कोटाकोटि है ।। पर धातकी खण्डकै वि द्वादश सूर्य अर द्वादश चन्द्रमा हैं । पर नक्षत्रनिको प्रमाण तीनसै छत्तीस है । अर ग्रहनिको प्रमाण एक हजार छप्यन है भर तारा आठ लाख कोटाकोटि अर सतीसस कोटाकोटि है। अर कालोदधि समुद्रकवि वियालीस सूर्य पर वियालीस ही चन्द्रमा है । पर अट्ठाईस लाख कोटाकोटि अर द्वादश हजार कोटाकोटि तारा हैं। ___ अर पुष्कराधक विषं बहत्तरि सूर्य है । अर बहत्तरही चन्द्रमा है । भर दो हजार सोला नक्षत्र है । अर तिरेष ठसे छत्तीम ग्रह है पर अड़तालीस लाख कोटाकोटि अर वाईस हजार'कोटाकोटि अर दोयसै कोटाकोटि तारा है। अर बाझ पुष्कराकवि ज्योतिषीनिकी संख्या इतनीही है । ताते पुष्करवर द्वीपकवि चतुर्गुण हैं । ताते पर द्विगुण ज्योतिषीनिकी संख्या जाननी ॥ पर तारका निकै जघन्य अंतर एक कोशका सातमा भाग मात्र है । मध्य अंतर पचास मात्र है। अर उत्कृष्ट अंतर एक हजार योजन प्रमाण है । भा सूर्यनिक जपन्य अंतर तथा चन्द्रमा निकै जघन्य अंतर निन्याणवै हजार छसै चालीस योजन प्रमाण है । अर उकृष्ट अंतर एक लाख छसै साठि योजन प्रमाण है। अर जंबूद्वीपादिकनिकविः । एक एक चंद्रमाकै तारकानिकी छासटि हजार कोटाकोटि पर नवस कोटाकोटि अर पिचेतर कोटाकोटि है सो । भर मठ्यासी महाग्रह है सो। भर अहाईश नक्षत्र है । भर सूर्यका एक सौ चौरासी महरू
SR No.010018
Book TitleJain Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankar P Randive
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year1931
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size7 MB
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