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________________ ( १७ ) . I श्वर विमानानि लोहिताक्षमयानि तप्तकनकप्रमाण्यंगारक विमानानि । बुधादि विमानान्यर्द्धगव्यूतायामविष्क्रमाणि शुकादिविमानानि राहुविमानतुल्य बाहुल्यानि । राम्रा दिविमानानि प्रत्येकं चतुर्भिर्देवसई सैरूयन्ते । नक्षत्रविमानानां प्रत्येकं चत्वारि देवसहस्राणि वाहकानि । तारका विमानानां प्रत्येकं द्वेदेवसह वाह रान्दाद्या भियोग्यानां रूपविकाराश्चद्रवन्नेयाः । नक्षत्रविमानानामुत्कृष्टो विष्कंभः क्रोशः तारका विमानानां वैपुल्यं जघन्यं क्रोशचतुर्भागः । मध्यमं साधिकः क्रोशचतुर्भाग उष्टमर्द्धगव्यूतं । ज्योतिष्क विमानानां सर्वजघन्यवैपुल्यं पंच धनुः शतानि । ज्योतिषामिंद्राः सूर्याचंद्रमसस्ते चासंख्याताः ॥ - । 1 1 अर्थ – प्रश्न - कहा । उत्तर - अल्पाच्तरपणांतें अभ्यर्हितपणांतें पूर्वनिपात है । ऐसो वाक्य शेष हैं । अर्थात् प्रथम ग्रहशब्द है सो अल्गच्तर है भर अभ्यर्हित है । बहुरि तारकशब्दतें नक्षत्रशब्द अभ्यर्हित हैं | प्रश्न - तिनके भावास कहां है। उत्तर- इहां कहिए है कि या समभूमितें ऊर्ध्व सात निव्वै योजन उल्लंघनकारि सर्व ज्योतिषीके भावास है । तिनमैं अधोभाग मैं तिष्ठनेवारे तौ तारका विचरे हैं । बहुरि तिनकै ऊपरि दशयोजन ऊल्लंघन करि सूर्य जेते विचरै हैं । बहुरि तिनकै ऊपर अस्सी योजन उल्लंघनकर ने चन्द्रमा है ते विचरे हैं । तापीछे तीनयोजन उल्लंघनकरि बुध जे हैं तेदिनरे हैं । बहुरि नाऊपरि तीन योजन उल्लंघन करि शुक्र ने हैं ते विचरे हैं। बहुरि ताऊपरि तीन योजन उल्लंघन - करि बृहस्पति हैं ते विचरै हैं । बहुरि तापी हैं चारियोजन उल्लंघन करि मंगल जे ते विचर हैं भ्रम हैं । त'पीछे चारयोजन उलंघन करि शनीश्वर जे हैं ते विचरे हैं, सो यो ज्योतिपीनिका समूहकै गोचर आकाशको ranाश एकसो दश योजन मोटो है अर असंख्यात द्वीपसमुद्र प्रमाण मनोदधि पर्यंत तिर्यविस्तारवान् हैं। इहां उत्कंच गाथा है-दुरसतसा दससीदिचदुतिगं च दुगचदुकं ॥ वारारविससिरिक्खा बुहभग्गव गुरुअंगिरारसणी ॥ १ ॥
SR No.010018
Book TitleJain Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankar P Randive
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year1931
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size7 MB
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