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________________ (१४४ ) - मागे नक्षत्रनिके नाम अनुक्रमतें कहैं हैं।कित्तिय रोहिणी मियसिर अद्दपुणव्वसु सपुस्स असिलेस्सा महपुव्वुत्तर हत्था चित्ता सादी विसाह अपुराहा ॥४३२॥ कृत्तिका रोहिणी मृगाशीर्षा आद्रा पुनर्वसुः सपुष्यः आश्लेपा। मघां पूर्वा उत्तरां हस्तः चित्रा स्वातिः विशाखा अनुराधा ॥ अर्थ:-कृत्तिका, रोहिणी, मृगशीर्षा, आद्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा ।। ४३२ ॥ जेहा मुल पुवुत्तर आसाढा अभिजिसवण सधणिष्ठा । तो सदमिस पुव्वुत्तर भद्दपदा रेवस्सिणी भरणी ॥ ४३३ ॥ ज्येष्ठा मुलं पूर्वोत्तरी आपाढौ अभिजित श्रवणः सधनिष्ठा । ततः शतभिपा पूर्वोत्तर भाद्रपदा रेवती अश्विनी भरणी ॥ अर्थ:-- ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ, उत्तरापाढ, अभिजित, श्रवण, . धनिष्ठा, शतभिषक, पूर्वाभाद्रपदा, उत्तराभाद्रपदा,. रेवती, अश्विनी, भरणी, ए अट्ठाईस नक्षत्रनिके नाम हैं। गणनाविर्षे इस क्रमते गिननँ ।४३३। . आगै नक्षत्रनिके अधिदेवतानिकौं दोय गाथानिकरि कहैं हैं । - अग्गि पयावदि सोमो रुद्दोदिति देवमंति सप्पो य ॥ पिदुभग अरियमदिणयर तोहणिलिंदग्गिमित्तिदा ॥ ४३४॥ अग्निः प्रजापतिः सोमः रुद्धः अदितिः देवमंत्री सर्पश्च ।। "पिताभगः अर्यमादिनकरः त्वष्टा अनिलंद्राग्निमित्रंद्राः ॥१३४॥ अर्थः-- अग्नि, प्रजापति, सोम, रुद्र, दिति, देवमंत्री, सर्प, पिता. भग, पर्यमा; दिनकरः त्वष्टा, अनिल, इंद्रनि, मित्र, इंद्र ॥ ४३४ ।।
SR No.010018
Book TitleJain Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankar P Randive
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year1931
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size7 MB
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