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________________ तीसरी मादि आवृत्ति कब होत है सो कहै हैं।. सुक्कदसमीविसाहे तदिया सत्तमिगकिण्हरेवदिए । तुरिया दु पंचमी पुण सुक्कचउत्थीए पुवफग्गुणिये ।। ४१४ शुक्लदशमीविशाखे तृतीया सप्तमी कृष्णरेवत्याम् ॥ तुरिया तु पंचमी पुन: शुक्कचतुथ्यों पूर्वफाल्गुन्याम् ॥४१४ अर्थः--शुक्ल पक्ष दशमी तिथिवि विशाखा नक्षत्रका योग होते तीसरी भावृत्ति हो है । बहुरि कृष्ण पक्षकी सप्तमी तिथिविर्षे रेवती नक्षत्रका योग होते चौथी आवृत्ति हो है। बहुरि शुक्लपक्षकी चौथी तिथिविर्षे पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्रका योग होते पांचवी आवृत्ति हो है ॥ ४१४॥ इन करि कहा हो है सो कहैं हैं।दक्षिणअयणे पंचसु सावणमासेसु पंचवस्सेसु ॥ एदाओ मणिदाओ पंचणियट्टीउ सूरस्स ॥४१५॥ दक्षिणायने पंचसु श्रावणमासेसु.पंचवर्षेषु ।। एतः भणितः पंचनिवृत्तयः सूर्यस्य ४१५ ॥ अर्थः-दक्षिणायनविर्षे पांच जे श्रावण मास पांच वर्षनिविर्षे होइ तिनविर्षे ए पांच आवृत्ति सूर्यकी कही हैं ॥ ४१५ ॥ उत्तरायणविर्षे भावृत्ति कैसे हे सो कहैं हैं।माघे सत्तमि किण्हे हत्थे विणिवित्तिमेदि दक्खिणदो ॥ विदिया सदभिससुक्के चोत्थीए होदि तदिया दु ॥४१६।। माघे सप्तम्यां कृष्णे हस्ते विनिवृत्ति एति दक्षिणतः ॥ द्वितीया शतभिशुक्ल चतुर्यो भवति तृतीया तु ॥ ४१६ ॥ • अर्थ:-माघमासविर्षे उत्तर आवृत्ति हो है तहां कृष्ण पक्षकी सप्तमी तिथिविर्षे चंद्रमाके हस्त नक्षत्रकी मुक्ति होते अयनपलटै है
SR No.010018
Book TitleJain Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankar P Randive
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year1931
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size7 MB
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