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________________ (१०४) माण ताका भाग दिएं जितनां जितनां प्रमाण आवै तितना उदय जानने सो कहिए है । दिन गतिका प्रमाण एकसौ सतरिका इकसठिवां भाग १७० सो इतना क्षेत्र विषै एक उदय होय तो वेदिशश रहित द्वीप चार क्षेत्रवि केते उदय होहिं ऐसें त्रैराशिक किए तरेसठि उदय पाए । तिनविर्षे अभ्यंतर वीथीका उदय पूर्वला उत्तरायणविर्षे गिनिए हैं तात वासठि उदय भए अर अवशेष छवीस एकसौ सत्तरिवां भाग प्रमाण उदयके अंग रहे । इहां द्वीप संबंधी अतका सूर्य सूर्यविर्षे अंतरालपर्यंत आए। बहुरि अव शेष छवीस एकसौ सतरिवां भाग उदय अंश रहे थे तिनका योजन अंशरूप क्षेत्र करिये हैं । एक उदयका एकसौ सत्तरि योजनका इकसठिवां भाग प्रमाण क्षेत्र होइ तौ छवीस एकसौ सत्तरियां भाग प्रमाण उदय अशनिका केता क्षेत्र हो । ऐसें त्रैराशिककरि फल राशिकौं गुणें छवीस योननका इकसठिवां भाग प्रमाण क्षेत्र भया । ए द्वीप संबंधी योजन अंश अगले किंवकरि रोक्या हुआ क्षेत्रविर्षे देना। बहुरि एकसौ सत्तरिका इकसठिवा भागवि एक उदय होय तो च्यारि योजन प्रमाण वेदिका क्षेत्रवि केता उदय होइ ऐसें त्रैराशिक करि भागहारका भागहार इकसठिकरि च्यारिकौं गुणें दोयसै चवालीस भए । इनकौं एकसौ सत्तरि भागहारका भाग दिएं एक उदय पाया अवशेष चौतरिका एकसौ सत्तरिया भाग प्रमाण उदय अंश रहे । इनको पूर्वोक्त न्यायकरि क्षेत्ररूप किएं चहौतरि योजनका इकसठिवां भाग प्रमाण क्षेत्र भया इसविर्षे बाईस योजनका इकसठिवां भाग प्रमाण क्षेत्र अहि पूर्वोक्त द्वीपका अंत अवशेष क्षेत्र छन्वीस योजनका इकसठियां भाग प्रमाण तिहविच मिलाएं । अठतालीस योजनका इकसठिवां भाग प्रमाण संर्यविभकारि रोक्या हुवा क्षेत्र संपूर्ण होहै।
SR No.010018
Book TitleJain Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankar P Randive
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year1931
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size7 MB
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