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________________ बहुरि माघ फाल्गुनादिक आषाढ पर्यंत उत्तरायण विर्षे मास मास पर्यंत तितनाही ताप क्षेत्र बघता बघता अर तम क्षेत्र घटता घटता जानना । ऐसे ही सर्व परिधिनि विर्षे तापतम क्षेत्रका प्रमाण विवक्षित मास वि ल्यावनां । बहुरि इहां पांच परिधि विष मास मासनिकी अपेक्षा वर्णन किया है इस ही प्रकार विवक्षित क्षेत्र का परिविवि विवक्षिन दिन अपेक्षा तार तम क्षेत्रका प्रमाण त्यांवना । बहुरि इहां जंबूद्वीप संबंधी सर्यनिका लवण पमुद्रके व्यासका छठा भाग पर्यंत प्रकास है तीत तहां पर्यंत ग्रहण किया है । बहुरि जिस क्षेत्र विर्षे ताप है तहाँ दिन जानना जहां तम है तहां रात्रि जाननी ॥ ३८२ ॥ आग ऐसे ल्याया जु ताप तमका क्षेत्र ताका प्रवर्ततको हैं हैंपरिहिम्हि जम्हि चिहिदि सूरो तस्मैव तापमाणदलं ।। विध पुरदो पसप्पदि पच्छामागे य सेसद्ध । ३८३ ॥ परिधौ यस्मिन् तिष्ठति सर्यः तस्यैव तापमानदलम् ॥ विचपुरतः प्रसर्पति पश्चाद्धागे च शेपार्धम् ॥ ३८३ ॥ · अर्थ:-जिस परिधिविर्षे सूर्य तिष्ठ हैं तिस परिधिहीका तापका जो प्रमाण ताका आधा तो सूर्यके विवत भाग फलें है, अव शेष आधा पीछे फैले है। भावार्थ:-परिधिविर्षे जो तापका प्रमाण वह्या तिह विष जहां सूर्यका विच पाइप तिड क्षेत्रकै आगै तिस प्रमाणते आधा ताए फैले है, पर बाधा पीछे फैले है । इहां प्रश्न-जो मेरुगिरिकी परिधीने आदि देकरि जिन परिधि. निवि सूर्यका गमन नाहीं तहां ताप कैसे फैलै है ? ताका समाधानसूर्य वियते सूधासन्मुख जो तिस विवक्षित परिधिवि. क्षेत्र तात आण वी आधा ताप फैले है । बहुरि ऐसा जानना जैसैं चिराक भाग
SR No.010018
Book TitleJain Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankar P Randive
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year1931
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size7 MB
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