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________________ ( ८३ ) . वर्षे सूर्य भ्रमण करै तिह दिन बारह मुहूर्तका दिन हो है । अठारह मुहूर्तकी रात्रि हो है ॥ ३७९ ॥ आज सूर्यका अवस्थिति स्वरूप भर दिन सनिविर्षे हानिचय ककडमयरे सव्यमन्तरवाहिरपहहि ओहोदि ॥ मुहभूमीण विसेसे वीथीणंतरहिदेय य चयं ॥ ३८० ॥ कर्कटमकरे सर्वाभ्यन्तर बाह्य पथस्थितो भवति । मुखभूम्योः विशेषे वीथीनामान्तरहिते च चयः ॥३८०॥ अर्थः-कट गरमकरविर्षे सर्व अभ्यन्तर वाह्यपथविर्षे तिष्ठतो सूर्य है । भावार्थ-राशिविर्षे सूर्य प्राप्त होई तब अभ्यतर वीथी विर्षे भ्रमण करें हैं। बहुरि मकरगशीविर्षे सूर्य प्राप्त होय तब वाह्य वीथी विर्षे भ्रमण कर है । बहुरि तिस राशिकी समाप्ततापर्यंत दिनरात्रीका प्रमाण तितनाही रहै हैं कि विशेष है । तहां कहिए हैं दिन दिन प्रति हानिचय हैं । कैसे? मुखतो बारह मुहूर्तक. दिन भर भूमि अठारह मुहूर्तका दिन तहां विशेषे कहिए भूमिमैंस्यौं मुख घटाएं अवशेष छह रहे इनको वीथी एकसौ चौरासी तिनकै वीचि अन्तराल एक्सौ तियासी सो इतनै दिननिविर्षे जो छह मुहूर्त होई तो एक अंतराल वि कितना मुहर्त होइ । ऐसे किएं छहका तीनसौ तिया सिर्वा भाग हो है। तहां तीन कर अपवर्तन कीए दोय मुहूर्तका इकसठिवां भाग प्रमाण दिन दिन प्रतिकानि चय होय है। ___ भावार्थ:- अभ्यन्तर वीथी विषै सूर्य जिह दिन भ्रमण करै तिह दिन अठारह मुहूर्तका दिन हो है । बहुरि तातै परें दूसरी वीथी विर्षे जिह दिन प्रमाण धेरै तिह दिन अठारह मुहूर्तमस्यों दोय मुहूर्तका इकसठिवां माग घटाइए इतने प्रमाण दिन हो है। ऐसेही दिन दिन प्रति घटना घटता वादावि सूर्य प्रमै विह दिन चारह मुहूर्तका दिन
SR No.010018
Book TitleJain Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankar P Randive
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year1931
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size7 MB
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