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________________ ( ८१ ) 1 १ः अर्थ :- मेरुगिर अर चंद्रमा सूर्यनिका मार्ग इनके वीचि अंतराल, बहुरि तिन मार्गनिका परिधि सो स्पावनां । कैसें सो कहिए हैं - जंबू· द्वीपका व्यासका एक लाख योजन तामै जंबूद्वीप के अंतर्ते एकसौ अस्सी : योजन उरैं अभ्यंतर मार्ग हैं । तातें सम्मुख दोऊ पार्श्वनिका द्वीपसंबंधी चारक्षेत्र मिलाए तीन से साठियोजन भए सो घटाएं निन्यानवें हजार छसै चालीस योजन प्रमाण अभ्यंतर वीथीका सूचीव्यास हो है। इतनांही अभ्यंतर वीथीवि तिष्ठते सन्मुख दोऊ सूर्य तिनकै बीच अंतराल है । बहुरि तामें मेरुका व्यास दशहजार योजन घटाइ ८९६४० आधा करिए तत्र चवालीस हजार आठसैवीस योजन प्रमाण मेरुगिरि भर अभ्यंतर वीथी विषै तिष्ठता सूर्य वीचि अंतराल हो हैं । बहुरि यामें दिनगतिका प्रमाण दोय योजन पर मठतालीसका एकसठिवां भागप्रमाण मिलाएं चवालीसहजार भाठसें बावीस योजन भर मठतालीसका इकसठवां भाग प्रमाण दुसरी वीथी विषै दिनगतिका प्रमाण मिलाएं उत्तरोत्तर पथ व तिष्ठता सूर्य र मेरुगिरिकै बीचि अंतरालका प्रमाण हो है । वहरि अभ्यंतर चीथीका सूचीव्यास ९९६४० विषै दुणा दिन गतिका प्रमाण तीनि चालीसा इकसठवां भाग ताका पांच योजन अर पैंतीसका इकसठवां भाग मिलाएं निन्यानवे हजार छसे पैंतालीस योजन योजनका पैंतीस इकसठिवां भाग प्रमाण वीथीविषै तिष्ठते दोक सूर्य तिनकै वीचि अंतराल हो है। इतनाही दूसरी वीथी दिपैं तिष्ठने दोऊ सूर्य तिसके बीच अंतराल हो है । इतनांही दुसरी वीथीका सूची व्यास हो है । ऐसें अपना अभ्यंतरवर्ती पूर्वपूर्व व्यासविपैं तिष्ठते दोऊ सूर्यनिकै बीच अंतराल हो है । बहुरि - " विक्खभवग्गदहगुणकारिणी वट्टस्तपरिरहो होदि " इस कारण सूत्रकरि अभ्यंतर परिधिका ( सूची व्यास ९९६४० का परिधि अनाईये | तब तीन लाख पंद्रह हजार निवासी ३१५०८९
SR No.010018
Book TitleJain Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankar P Randive
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year1931
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size7 MB
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