SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 519
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैनेन्द्र-संज्ञासूची निष्ठा थः पद जैनेन्द्रसंज्ञा पाणिनिसंज्ञा । जेनेन्द्रसंज्ञा पाणिनिसंज्ञा । जैनेन्द्रसंज्ञा पाणिनिसंज्ञा अधिकरणः अधिकरणम् । करणम् [१।२।११४] करणम् । तः शिशरा [१।२।११६] कर्ता [१।२।१२४] कर्त्ता ता [१।२।१५८] षष्ठी अनुदात्तः अनुदात्तः कर्म [१।२।१२०] कर्म | ति [१।२।१३१] गतिः [११११११३] का [१।२।१५८] पञ्चमी | त्यः [२।१।१] प्रत्ययः अन्यः [१।२।१५२] प्रथमपुरुषः किः [१।४।५६] सम्बुद्धिः अप [शरा१५८ चतुर्थी ख थः [४।३।३] अभ्यस्तम् अपादानम् अपादानम [१।२।११०] खम् [१।१।६१] लोपः संज्ञा अस्मद् [१।२।१५२] उत्तमपुरुषः खुः [१।१।२६] दः [१।२११५१] श्रात्मनेपदम् दिः [१।१।२०] प्रगृह्यम् दोः [१११।११] दीर्घः इत् [१।२।३] इत गि [१।२।१३०] उपसर्गः दुः [२१४६८] वृद्धम् इप् [१।२।१५८] द्वितीया गुः [१।२।१०२] अङ्गम् घ [१।३।१०५] उत्तरपदम् इल [१।१।३४] द्रिः [४।२।६] तद्राजः | घि [१।२।९९] लवु | द्वन्द्वः [१।२।६२] द्वन्द्वः ईप् [१।२।१५८] । द्विः [११२।१५५] द्विवचनम् ङः [१।१।४] अनुनासिकः उङ [१।१।६६] | धम् [१।१।३१] सर्वनामस्थानम् उपधा ङिः [१।११३०] भावकर्म धिः [१।२।२] अकर्मकः उज् [१।१।६२] उदात्तः [१।१।१३] घुः [१।२।१] धातुः उदात्तः चः [४।३।६] उदात्त: अभ्यासः | उप् [१।१।६२] उस् [१।११६२] नप् [नपुंसकलिङ्गस्य संज्ञा प्राचाम्] | जिः [१।१।४५] सम्प्रसारणम् निः [ २२] निपातः न्यक् [१।३।६२] उपसर्जनम् एकः [१।१।१५५] एकवचनम् एप् [१।१।१६] गुणः : झिः [१।१।७४] श्रव्ययम् पः [१।१।११] पदम् [१।२।१०३] पदम् ऐप [१॥ ॥१५] वृद्धिः टिः [१।१६५] टिः | प्रः [१।१।११] सतमी लुप हस्वः For Private And Personal Use Only
SR No.010016
Book TitleJainendra Mahavrutti
Original Sutra AuthorDevnandi Maharaj, Abhaynandi Maharaj
AuthorShambhunath Tripathi, Mahadev Chaturvedi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages568
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy