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________________ छठे उद्देशक में फरमाया है मुक्त आत्मा का स्वरूप प्रतिपादन करने में समस्त शब्द हार मान जाते हैं, वहा तर्क का प्रवेश नही होता है । बुद्धि उसे अवगाहन नहीं करती है। वह मुक्तात्मा प्रकाश-स्वरूप है। वह समग्र लोक का ज्ञाता है। वह न लम्बा है, न छोटा है, न गोल है (गेन्द के आकार का नहीं है), न तिकोना है, न चतुष्कोण है और न परिमण्डल है (वलय-चूडी के आकार का नहीं है)-उस मुक्तात्मा को इन मे से कोई प्राकृति नही है। वह न काला है, न नीला है, न लाल है, न पीला है और न शुक्ल है- उसका कोई रूम नहीं है। वह न सुगन्ध वाला है, न दुर्गन्ध वाला है-उस मे कोई गन्ध नहीं है । वह न तीक्ष्ण (तीखा) है न कदक है न कसायला है, न खट्टा है और न मीठा है-उस मे कोई रस नही है। वह न कर्कश है, न मृदु है, न भारी है, न हलका है, न ठण्ठा है, न गरम है, न स्निग्ध है और न रूक्ष है-उस मे कोई स्पर्श नही है। वह मुक्तात्मा शरीररूप नही है। वह जन्म मरण के मार्ग को सर्वथा पार कर चुका है । वह अनासक्त है-प्रासाक्ति वाला नहीं है। वह न स्त्रो रूप है, न पुरुष-रूप है, न अन्यथा रूप है अर्थात् न नपुसक रूप है और अवेद है-वेद रहित है। वह समस्त पदार्थों का सामान्य और विशेष रूप से ज्ञाता है। उसे समझाने के लिए कोई उपमा नही है, वह अरूपी सत्ता है-रूप रहित सत्ता वाला है। उस अनिर्वचनीय को किसी वचन के द्वारा नही कहा जा सकता है । वह शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श स्वरूप नही है । शब्द के द्वारा वाच्य (जिस के लिए शब्द का प्रयोग किया जाता है)यही पदार्थ होते है, परन्तु मुक्तात्मा इन मे से कुछ नहीं है, अतः वह प्रवक्तव्य है।
SR No.010013
Book TitleJain Agamo me Parmatmavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1960
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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