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________________ दिग्दर्शन वैदिक-परम्परा मे ईश्वर शब्दईश्वर शब्द वैदिक दर्शन का अपना एक पारिभाषिक शब्द है । वैदिक दर्शन के अनुसार उस महाशक्ति का नाम ईश्वर है, जो इस जगत की निर्मात्री है, एक है, सर्वव्यापक और नित्य है । वैदिक दर्शन का विश्वास है कि ससार के कार्यचक्र को चलाने की बागडोर ईश्वर के हाथ मे है, ससार के समस्त स्पन्दन उसी की प्रेरणा से हो रहे है। वैदिक दर्शन कहता है कि ईश्वर सर्वशक्तिमान है, वह जो चाहे कर सकता है। कर्तव्य को अकर्तव्य और अकर्तव्य को कर्तव्य बना देना उस के बाए हाथ का काम है । सारा ससार उस की इच्छा का खेल है, उसकी इच्छा के बिना एक पत्ता भी नही कम्पित हो सकता। ससार का उत्थान और पतन उसी के इशारे पर हो रहा है। __वैदिक दर्शन की आस्था है कि अज्ञ होने के कारण जीव अपने सुख और दुःख का स्वय स्वामी नहीं है, इस का स्वर्ग या नरक जाना ईश्वर की इच्छा पर निर्भर है। मनुष्य कुछ नही कर सकता। उसे तो स्वय को ईश्वर के हाथो मे सौप * कर्तु मकर्तु मन्यथा कतुं समर्थ ईश्वर । अज्ञो जन्तुरनीशोऽयमात्मन सुखदु खयो । ईश्वरप्रेरितो गच्छेत्, स्वर्ग वा श्वभ्रमेव वा ॥ (महाभारत)
SR No.010013
Book TitleJain Agamo me Parmatmavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1960
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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