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________________ ( ३९ ) 1 * अत्थि ण भते । सोहम्मस्स कम्पस्स अहे सिद्धा परिवसन्ति ? णो इणट्ठे समट्ठे, एव सव्वेसि पुच्छा । ईसाण स्स, सणकुमारस्स जाव अच्चुयस्स गविज्जविमाणाण अणुत्तरविमाणाण । हिन्दी - भावार्थ 1 गौतम स्वामी ने पूछा भगवन् । क्या सिद्ध सौधर्म नामक प्रथम देवलोक के नीचे रहते है ? भगवान ने कहा- गौतम । नही रहते है । जिस प्रकार प्रथम देवलोक के सम्बन्ध मे पृच्छा की गई है, उसी प्रकार ईशान, सनत्कुमार यावत् प्रच्युत, ग्रेवैयक विमान तथा अनुत्तर विमानो के सम्बन्ध मे भी पृच्छा की गई और भगवान ने सब के सम्बन्ध मे " नही रहते है" यही उत्तर दिया । मूल पाठ + अत्थि भते ! ईसीप भारा पुढवोए अहे सिद्धा परिवसन्ति ? णो इणट्ठ समट्ठे । * अस्ति भदन्त । सौधर्मस्य कल्पस्य श्रध सिद्धा परिवसन्ति ? नायमर्थ समर्थ, एव सर्वेषा पृच्छा । ईशानस्य, सनत्कुमारस्य यावदच्युतस्य ग्रैवेयकविमानानाम्, अनुत्तर विमानानाम् । + अस्ति भदन्त । ईषत्प्राग्भाराया पृथ्व्या अध सिद्धा परिवसन्ति ? नायमर्थः समर्थ. ।
SR No.010013
Book TitleJain Agamo me Parmatmavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1960
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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