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________________ (१५) सस्कृत-व्याख्या तथा 'पुसइ' गाहा, स्पृशत्यनन्तान्सिद्धान् सर्वप्रदेशैरात्मसम्बन्धिभि' fणयमसो' ति नियमेन सिद्ध , तथा तेऽप्यसख्येयगुणा वर्तन्ते देश प्रदेशश्च ये स्पृष्टा , केभ्य. ? सर्वप्रदेशस्पृष्टभ्यः, कथम् ?--सर्वात्मप्रदेश स्तावदनन्ता स्पृष्टा , एक सिद्धावगाहनायामनन्तानामवगाढत्वात्, तर्थ कैकदेशेनाप्यनन्ता एवमेकैकप्रदेशेनाप्यनन्ता एव, नवर देशो-द्वयादिप्रदेश:समुदाय , प्रदेशस्तु-निविभागोऽश इति, सिद्धश्चासख्येयदेशप्रदेशात्मक , ततश्च मूलानन्तकमसख्येयैर्देशानन्तकै रसख्यैरेव च पदेशानन्तकगुणित यथोक्तमेव भवतीति । हिन्दो-भावार्थ सिद्ध अपने आत्मप्रदेशो से अनन्त सिद्धो को स्पर्श किए हुए है और देश (दो से अधिक) एव प्रदेश (एक आत्मप्रदेश) द्वारा जो स्पर्श किए हुए है, वे उन से असख्यात गुणा है । मूल पाठ * असरोरा जीवघणा उवउत्ता दसणे य नाणे य । सागारमणागार लक्खणमेय तु सिद्धाण ।।११।। सस्कृत-व्याख्या अथ सिद्धानेव लक्षणत पाह-'असरीरा' गाहा, उक्तार्था, सग्रहरूपत्वाच्चास्या न पुनरुक्तत्वमिति ।। हिन्दी-भावार्थ सिद्ध भगवान अशरीरी है, औदारिक, वैक्रिय आदि पञ्च* अशरीरा जीवघना उपयुक्ता दर्शने च ज्ञाने च। साकारमनाकार लक्षणमेतत् तु सिद्धानाम् ।। -
SR No.010013
Book TitleJain Agamo me Parmatmavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1960
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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