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________________ 'जैनागमो में परमात्मवाद" यह पुस्तिका है । इस पुस्तिका मे परमात्मसम्बन्धी प्राय सभी पाठो को सग्रहीत कर लिया गया है। __“जैनागमो मे परमात्मवाद" मे सर्वप्रथम शास्त्रीय पाठ है, फिर टिप्पणी मे उसकी सस्कृत-च्छाया है । तदनन्तर उस पाठ की सस्कृत-व्याख्या है । तत्पश्चात् उसका हिन्दी में भावार्थ है। मूलपाठ देखने वाले को इस मे मूलपाठ मिलेगा। जो सस्कृत भाषा के विद्वान मूलपाठ के गभोर हार्द को सस्कृत भाषा मे जानने की रुचि रखते है, उनके लिए मूलपाठ की सस्कृत-व्याख्या का इसमे सयोजन किया गया है । जो हिन्दी मे उसे समझना चाहते है, उन के लिए हिन्दी भाषा मे उन पाठो का अनुवाद कर दिया गया है । इस प्रकार इस पुस्तिका को प्रत्येक दृष्टि से उपयोगी और लोकप्रिय बनाने का स्तुत्य प्रयास क्यिा गया है। इस का सभी श्रेय हमारे श्रद्धेय गुरुदेव जैन-धर्म-दिवाकर आचार्य-सम्राट् पूज्य श्री आत्माराम जी महाराज को ही है। इन्ही के अनवरत परिश्रम का यह सुफल है । शारीरिक स्वास्थ्य ठीक न रहते हुए भी आचार्य श्री ने साहित्य-सेवा मे अपना यह योगदान दिया है, इस के लिए साहित्यजगत आचार्य श्री का सदा के लिए ऋणी रहेगा। ईश्वर-सम्बन्धी हिन्दी साहित्य मे इस पुस्तक की अपनी विशिष्टि उपयोगिता है । जो व्यक्ति जानना चाहते है कि जैनागमो मे परमात्मा के सम्बन्ध मे कैसा निरूपण किया गया है? और किन-किन शब्दो मे किया गया है? उनको इस पुस्तक मे पर्याप्त सामग्री मिलेगी । और जो लोग यह कहते चले आ रहे है कि जैनदर्शन परमात्मा की सत्ता से इन्कार करता है,
SR No.010013
Book TitleJain Agamo me Parmatmavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1960
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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