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________________ 146 תבבבבה प्रस्तावना + आत्मनि अधिकृत्य अध्यात्मम् । अध्यात्म आत्माने साचा स्वरूपमां पीछानवा सिवायनी सर्व करणी निष्फळप्राय कही छे. एटला माटे ज जैन शास्त्रकारोए आत्माने ओळखवा माटे - आत्मानुं स्वरूप जाणवा माटे अनेकविध ग्रंथोनी रचना कंरी छे. आत्माने ओळखवो, आत्मानी नजीक जवुं तेनुं नाम अध्यात्म छे. ज्यारे साची अध्यात्मदशा प्राप्त थाय छे त्यारे जीव निर्वाणप्राप्तिनी तैयारी करे छे. आत्माने ओळखवा माटे जीव अने तेना साथै संबंध धरावता समग्र पदार्थोनु यथास्थित स्वरूप जाणवुं जोइए अने तेने माटे जैन शास्त्रकारोए “नव तत्त्वो " नी गूंथणी करी छे. आपणा आ प्रस्तुत ग्रंथ " जैनतत्त्वसार " मां नव तत्त्वोनी स्पष्टतया नहीं परन्तु प्रकारान्तरे रूपरेखा समजाववामां आवी छे. ए उपरांत ते विषयने वधु स्फोट करवा माटे घणाए लौकिक उदाहरणो आपवामां आव्या छे. सुखाभिलाषा दरेक प्राणीने सुख प्रिय होय छे, परन्तु अभिथी कदी कमळनी उत्पत्ति थई सांभळी छे ? तेम आ जीवनो तदनुकूल प्रयत्न नथी
SR No.010011
Book TitleJain Tattavsara Granth Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandra Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthamala Ahmedabad
Publication Year1941
Total Pages333
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size13 MB
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