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________________ 2 आग्रंथ प्रथम संवत १९६६ मां भावनगर श्री आत्मानंद जैन सभा तरफथी मूळ ने अनुवाद साथै छपायेल छे. तेनी शुद्धि अने भाषातर वडोदरानिवासी श्रावक मगनलाल चुनीलाल वैदे करेल छे: उपोद्घात प्रवर्तक महाराज श्री कातिविजयजीए लखेलो छे. भाषांतर पण ते बुकमां पाछळ आपलं छे. आ ग्रथ टीकायुक्त होय तो वधारे उपकारक थाय एवो विचार आवतां टीकानी शोध करतां आ टीकायुक्त ग्रंथनी प्रति पंन्यासजी मानविजयजीने वडोदरामां मळी आवी. 'महाराजश्रीएं 'ए प्रत भंडारमाथी कढावीने वडोदराना रहीश मास्तर सुंदरलाल चुनीलालनी मारफत लहीया पासे ते लखावी, पण आवा ग्रथनो विशेष प्रचार थाय तो सविशेष उपकार थाय ते आशयथी ते हस्तलिखित प्रत परथी तेमणे प्रेसकोपी कराववानुं विचार्यु अने ते काम " जैन " ओफिसमां काम करता शा. नरोत्तमदास रुगनाथने सोपवामां आव्युं जे तेमणे अत्यंत काळजीथी पार पाड्यु. हस्तलिखित प्रतमा कोइ स्थळे स्खलना रही गइ होय तो तेनी शुद्धि करवा माटे बीजी प्रतनी अगत्यता जणाइ पण पाटण तेमज अमदावादना कोइ ज्ञान - भडारमांथी आ ग्रंथनी बीजी नकल उपलब्ध थई शकी नथी. आभार भावनगरनिवासी वयोवृद्ध, ज्ञानवृद्ध श्री कुंवरजी आणंदजीए आ ग्रंथना प्रूफो लागणीपूर्वक जोइ आप्या छे ते माटे तेमनो आभारी हूं. पूज्य पन्यासजी महाराजे अनहद प्रयास सेवी आ ग्रंथनो उद्धार कर्यो छे ते माटे तेमना ऋणनुं माप करवुं मुश्केल छे. आ उपरांत सौथी विशेष उपकार तो जामनगर, राधणपुर, खीवानदी (मारवाड़ ) ना आर्थिक सहायक सद्गृहस्थोनो मानवानो रहे छे. आ पुस्तकना मुद्रणकार्यमां महोदय प्रेसना मालीक शा. गुलाबचंद लल्लुभाइए पण चीवट अने खंतपूर्वक सहकार आप्यो छे. निवेदक- शेठ भोगीलाल साकलचंद
SR No.010011
Book TitleJain Tattavsara Granth Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandra Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthamala Ahmedabad
Publication Year1941
Total Pages333
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size13 MB
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