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________________ (८६) करता है जैसेकि-यह पदार्थ ऐसे 'भी' है । सो यह कथन अविसंवादित है अर्थात इसमें किसीको भी विवाद नहीं है जैसेकि-जीव सान्त भी है-अनंत भी है ॥ यदुक्तमागमे जेवियर्णते खंदया जाव सते जीवे अते अजीवे तस्सवियणं अयमठे एवं खलु जाव दवओणं एगे जीवे सअंते १ खेत्तनणं जीवे असंक्खेज पयसिए असंक्खेज पयसो गाढे अस्थि पुणसे अणंते २ कालणं जीवेण कयाश्नासि निच्चे णस्थि पुणसे श्रत्ते ३ नावउणं जीवे अर्णताणाण पजावा अणंत्ता दसण पजावा अणंत चरित्त पङवा अणंता गुरुय लहुय पजावा अणंत्ता अगुरुय लहुय पज्जवा एस्थि पुणसे अंते ४ सेत्तं दवर्ड जोवे सश्रते खेत्त जीवे सअंते काल जीवे अणंते ना. व जीवे अणंते ॥ भगवती सूत्र शतक २ उद्देश १॥
SR No.010010
Book TitleJain Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Upadhyaya
PublisherJain Sabha Lahor Punjab
Publication Year1915
Total Pages203
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size6 MB
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