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________________ दुविहे पं. तं. निविस्समाणेय णिविठ्ठकाइय सुहुमसंपरायए दुविहे पं. तं. पमिवाश्य अप्पभिवाश्य अहक्खाय चरित्त गुणप्पमाणे विहे पं. तं. बनमत्थेय केवलीय सेत्तं चरित्त गुणप्पमाणे सेत्तं जीव गुणप्पमाणे सेत्तं गुणप्पमाणे ॥ भाषार्थः-(प्रश्नः) सामायिक चारित्र गुणप्रमाण कितने प्रकारसे वर्णन किया गया है ? ( उत्तरः) द्वि प्रकारसे, जैसे कि इत्वर् काल १ यावजीवपर्यन्त २ । ( प्रश्नः) छेदोपस्थापनी चारित्रके कितने भेद है ? ( उत्तरः) द्वि भेद है, जैसेकि सातिचार १ निरतिचार २।(प्रश्नः) परिहार विशुद्धि चा-' रित्र भी कितने वर्णन किया गया है ? (उत्तरः) इसके भी द्वि भेद है जैसेकि प्रवेशरूप १ निवृत्तिरूप २॥ (प्रश्नः) सूक्ष्म संपराय चारित्रके कितने भेद हैं ? ( उत्तरः)दो भेद हैं, जैसेकि प्रतिपाति १ अप्रतिपातिर। (प्रश्नः) यथाख्यात चारित्र भी कितने प्रकार वर्णन किया गया है?
SR No.010010
Book TitleJain Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Upadhyaya
PublisherJain Sabha Lahor Punjab
Publication Year1915
Total Pages203
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size6 MB
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