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________________ (५४) बोध हो सकता है । सो यह विशेष दृष्ट है और यही दृष्टि साधम्यत्वं अनुमान प्रमाण है सो यह अनुमान प्रमाणका स्वरूप संपूर्ण हुआ ॥ मूल ॥ लेकित्तं उवमे २ऽविहे पं. तं. साहम्मोवणीयए वेहम्मोवणीयए सोत्तं साहम्मो वणीयए तिविहे पं. तं, किंचिसाहम्मोवणीए पायसाहम्मोवणीए सबसाहम्मोवणीए ॥ ___ भाषार्थः-श्री गौतमप्रभुनी भगवान्से प्रश्न करते हैं कि हे भगवन् उपमान प्रमाण किस प्रकारसे वर्णन किया गया है ? भगवान् कहते हैं कि हे गौतम ! उपमान प्रमाण द्वि प्रकारसे वर्णन किया गया है जैसेकि साधोपनीत १ वैधयोपनीत २॥ गौतमजीने पुनः पूर्वपक्ष कियाकि हे भगवन् साधम्र्योपनीत कितने प्रकारसे कथन किया गया है ? भगवान्ने फिर उत्तर दियाकि हे गौतम! साधम्योपनीत अनुमान प्रमाण तीन प्रकारसे कथन किया गया है जैसेकि किञ्चित साधम्र्योपनीत अनुमान प्रमाण १ प्रायः साधोपनीत अनुमान प्रमाण २ सर्व साधम्योपनीत अनुमान प्रमाण ३॥ इसी प्रकार गौतमजीने पूर्वपक्ष फिर किया ।
SR No.010010
Book TitleJain Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Upadhyaya
PublisherJain Sabha Lahor Punjab
Publication Year1915
Total Pages203
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size6 MB
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