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________________ ( ४४ ) भाषार्थ : - ( प्रश्नः ) अवयव अनुमान प्रमाणके उदाहरण कौन २ से है अर्थात् जिन उदाहरणों के द्वारा अवयव अनुमान प्रमाणका बोध हो, क्योंकि अवयव अनुमान प्रमाण उसे कहते जिस पदार्थ एक अवयव मात्रके देखने से पूर्ण उस पदाके स्वरूपका ज्ञान हो जाये || ( उत्तरः ) जैसे महिप शंग करके, कुर्कुट शिखा करके, हस्ति दांतों करके, शूकर दाढ़ी करके, अश्व खुरकरके, मयूर पूछ करके, वाघ नख करके, चमरी गायवालो करके, वानर लांगुल ( पूछ ) करके, मनुष्य द्विपद करके, गवादि पशु चार पद करके, कानखरजुरादि बहुपदकरके, सिंह केसरकरके, वृषभ स्कंध करके, स्त्री भुजाओंके आभूषण करके शुभट राजचिन्हादि करके तथा स्त्री वेप करके, एक सित्थ मात्रके देखनेसें हांडी के तंडुलादिकी परीक्षा हो जाती है, कविकी परीक्षा एक गाथाके उच्चारणसे हो जाती है, इसका नाम, अवयव अनुमान प्रमाण है, क्योंकि एक अंश करके वोध हुआ सर्व अंशोका बोध हो जाता है जेसे कि, आगममें कहा है कि (जे एगं जाणइ से सव्वं जाणइ जे सव्वं जाणइ से एगं जाणइ ) जो एकको जानता है वह सर्वको जानता है जो सर्वको जानता है वह एकको भी जानता है ॥ अथ आश्रय अनुमान प्रमाण स्वरूप इस मकारसे कथन किया जाता है जैसेकि -
SR No.010010
Book TitleJain Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Upadhyaya
PublisherJain Sabha Lahor Punjab
Publication Year1915
Total Pages203
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size6 MB
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