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________________ कि-प्रत्यक्ष प्रमाण १ अनुमान प्रमाण २ उपमान प्रमाण ३ आ. गम प्रमाण (शास्त्र प्रमाण )४॥ मूल॥ सेकिंतं पञ्चक्खे ५ दुविहे पं. तं. इंदिय पञ्चक्खे नोइंदिय पञ्चक्खे सेकित दिय पञ्चक्खेर पंचविहे पं.तं.सोइंदिये पञ्चक्खे चक्खुइंदिय पचक्खे घाणिदिय पञ्चक्खे जिनिंदिय पञ्चक्खे फासिदिय पच्चक्खे सेतं इंदिय पञ्चक्खे ॥ भाषार्थ:-हे भगवन् प्रत्यक्ष प्रमाण कितने प्रकारसे वर्णन • किया है ? तव श्री भगवान्ने उत्तर दिया कि-हे गौतम ! पंच प्रकारसे कहा गया है जैसे कि श्रोतेंद्रिय प्रत्यक्ष १ चक्षुरिंद्रिय प्रत्यक्ष २ घ्राणेंद्रिय प्रत्यक्ष ३ जिह्वाइंद्रिय प्रत्यक्ष ४ स्पशझंद्रिय प्रत्यक्ष ५॥ यह इंद्रिय प्रत्यक्ष ज्ञान है, किन्तु निश्चय नयके मतमें यह परोक्ष ज्ञान हैं अपितु व्यवहारनयके मतसे यह इंद्रिय जन्य ज्ञान प्रत्यक्ष माने हैं जैसे कि-नयचक्रमें लिखा है कि सम्यग् ज्ञानं प्रमाणम् । तद्विधा प्रत्यो . तर भेदात् । अवधि मनःपर्यायवेकदेश प्रत्यदौ , केवलं सकल प्रत्यक्षं । मतिश्रुति परोदे इति - वचनात् ॥
SR No.010010
Book TitleJain Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Upadhyaya
PublisherJain Sabha Lahor Punjab
Publication Year1915
Total Pages203
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size6 MB
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