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________________ (२९) स्वाकाल ३ स्वाभाव ४। उसका अस्ति स्वभाव है, जैसोक घेतनका तीन कालमें ज्ञानस्वरूप रहना, और पुद्गल द्रव्यमें अनादि कालसे जड़ता इत्यादि ।। सो इसी प्रकार वस्तु द्रव्यके प्रमेय, अगुरुलघु, प्रदेश, चेतन, अचेतन, मूत, अमूर्त इत्यादि यह दश सामान्य गुण एक एक द्रव्यमें आठ २ सामान्य गुण हैं जैसेकि जीव द्रव्यमें अचे. तनता और मूर्तिभाव नहीं है, और पुद्गल द्रव्यमें चेतनता अमूर्तिभाव नहीं है ॥ धर्म, अधर्म, आकाश, काल द्रव्यमें चेतनता मुर्तिभाव नही है। इसी प्रकार दो दो गुण वर्जके शेष अष्ट अष्ट गुण सर्व द्रव्योम हैं,और विशेष पोडश गुण हैं जैसेकि ज्ञान, दर्शन, मुख, वीर्याणि, स्पर्श, रस, गंध, वर्णाः, गतिहेतुत्वं, स्थितिहेतुत्वं, अवगाहनहेतुत्वम्, वर्तनाहेतुत्वं,चेतनहेतुत्वं,अचेतन हेतुत्वं, मूर्तत्वं, अमूर्तत्वं द्रव्याणां विशेषगुणाः पोडश विशेषगुणेषु जीव पुद्गलयोः पहिति॥ जीवस्य ज्ञान दर्शन मुख वीर्याणिचेतनत्व ममूर्तमिति पद ॥ पुद्गलस्य स्पर्श रस गंध वर्णाः मूर्त्तत्वमचेतन मिति पद । इतरेपां धर्माधर्माकाशकालानां प्रत्येकं त्रयो गुणा धर्म द्रव्ये गतिहेतुममूर्तत्वमचेतनत्वमेते त्रयो गुणाः । अधर्म द्रव्ये स्थितिहेतुत्वममूर्तत्वमचेतनत्वमिति । आकाश द्रव्ये अवगाहन
SR No.010010
Book TitleJain Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Upadhyaya
PublisherJain Sabha Lahor Punjab
Publication Year1915
Total Pages203
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size6 MB
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