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________________ ( १७१) सचिन निक्खेवणया १ सचित्त पेहणिया २ कासाश्कम्मे ३परोवएसे मच्छरियाए५॥ भाषार्थः-न देनकी बुद्धिसे निर्दोष वस्तुको सचित्त वस्तुपर रख दी हो १ वा निर्दोषको सचित्त वस्तु करिके ढांप दिया हो २ और कालके अतिक्रम हो जानेसे विज्ञप्ति करि हो तथा वस्तुका समय ही व्यतीत हो गया होवे ही वस्तु मुनियोंको दे दी हो ३ और परको उपदेश दिया हो कि तुम ही आहारादि देदो क्योंकि आप निदोष होने पर भी लाभ न ले सका ४ अथवा मत्सरतासे देना ५ ॥ इन पांचों ही आतिचारोंको त्याग करके. चतुर्थ शिक्षाबत पालण करना चाहिये । सो यह पांच अनुव्रत, तीन अनुगुणवत, चार शिक्षाव्रत एवं द्वादश व्रत गृहस्थी धारण करे, इसका नाम देशचारित्र हैं, क्योंकिं सम्यग् ज्ञान, सम्यग् दर्शन, सम्यग् चारित्र, तीन ही मुक्तिके. मार्ग हैं। इन तीनोंको ही धारण करके जीव संसारसे पार १ द्वादश व्रत इस स्थलपे केवल दिग्दर्शन मात्र ही लिखे हैं किन्तु विस्तारपूर्वक श्री उपासक दशान सूत्र वा श्री आव• श्यकादि सूत्रोंसे देखने चाहिये ।।
SR No.010010
Book TitleJain Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Upadhyaya
PublisherJain Sabha Lahor Punjab
Publication Year1915
Total Pages203
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size6 MB
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