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________________ (१६६ ) सामायिक शब्द सिद्ध होता है जिसका अर्थ यह है कि आत्माको शान्ति मागमें आरूढ़ करना वा जिसके करनेसे शान्तिको प्राप्ति होके उसीका नाम सामायिक है । सो इस प्रकारसे भाव सामायिकको दोनों काल करे । फिर प्रात:काळ, और सन्ध्याकालमें सामायिककी पूर्ण विधिको भलि भांतिसे करता हुआ सामायिक सूत्रको पठन करके इस प्रकारसे विचार करे कि यह मेरा आत्मा ज्ञानस्वरूप है, केवल कर्मों के अंतरसे ही इसकी नाना प्रकारकी पर्याय हो रही है और अनादि काल के काँके संगसे इस प्राणीने अनंत जन्म मरण किये हैं। फिर पुनः २ दुःखरूपि दावानलमें इस प्राणीने परम कष्टोंकों सहन किया है, और तृष्णाके वशमें होता हुआ अतृप्त ही मृत्युको मात हो जाता है । सो ऐसे परम दुःखरूप संसार चक्रसे विमुक्त होंनेका मार्ग केवळ सम्यग् ज्ञान सम्यग् दर्शन सम्यग् चारित्र ही है। सो जब प्राणी आस्रवके मार्गीको बंध करता है और आत्माको अपने वंशमें कर लेता है, तब ही कोंके बंधनोंसे विमुक्त हो जाता है । सो इस प्रकारके सद् विचारोंके द्वारा सामायिक कालको परिपूर्ण करे। अपितु सामायिक रूप व्रत दो घटिका । प्रमाण दोनों समय अवश्य ही करना चाहिये और इस व्रतके भी पांचों अतिचारोंको वर्जना चाहये, जैसे कि
SR No.010010
Book TitleJain Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Upadhyaya
PublisherJain Sabha Lahor Punjab
Publication Year1915
Total Pages203
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size6 MB
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