SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 168
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १६० ) २३ पाहणिविह- पादरक्षकका परिमाण अर्थात् जूतो आदिका परिमाण करना | २४` संयणविह-शय्याका परिमाण अर्थात् वस्त्रोंकी गणन संख्या अथवा शय्यादि स्पर्श करना वा पल्यकादिका परिमाण । २५ सचित्तविह- सचित्त वस्तुओं का परिमाण अर्थात् पृथ्वी, पाणी, अग्नि, वायु, वनस्पति इत्यादि सचित्तं वस्तुओंका परिमाण । २६ दरवावह - द्रव्यों का परिमाण अर्थात् भिन्न २ वस्तुओंका नाम लेकर परिमाण करना । जैसे किसीने ५ द्रव्यं रक्खें तो जल १ पूपा (रोटी) २ दाल ३ शाकं ४ दुग्ध ५ | इसी प्रकार अन्य द्रव्योंका परिमाण भी जान लेना चाहिये । तात्पर्य यह है कि विनां परिमाण कोई भी वस्तु ग्रहण करनी न चाहिये । सो इसके भी पांच ही अतिचार है, जैसेकि - सचिताहारें सचित्त पडिवद्धाहारे अप्पोलिउसही नक्खणया डुप्पोलसदी नक्खया तुच्छोसही नक्खण्या ॥ : भाषार्थ:-सचित्त वस्तुका परित्याग होने पर यह अतिचार भी वर्जे, जैसे कि सचित्त वस्तुका आहार १ साचेच प्रति
SR No.010010
Book TitleJain Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Upadhyaya
PublisherJain Sabha Lahor Punjab
Publication Year1915
Total Pages203
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy