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________________ ( ११ ) सो प्रथम व्रतकी शुद्ध पांच अतिचारों को भी वर्जित करे जोकि प्रथम व्रतमें दोषरूप है अर्थात् प्रथम व्रतको कलंकित करने वाले हैं, जैसेकि - २ बविच्छेदे ३ भारे ४ बंधे १ व अत्तपाणिवुनेए ५ ॥ अर्थ:- क्रोधके वश होता हुआ कठिन बांधनों से जीवों को चांधना १ और निर्दयके साथ उनको मारना २ तथा उनके अंगोपाङ्गको छेदन करना ३ अप्रमाण भारका क़ादना अर्थात पशुकी शक्तिको न देखना ४ अन्न पाणी का व्यवच्छेद करना अर्थात् अन्न पाणी न देना ५ ॥ यह पांच ही दोष प्रथम व्रतको कलंकित करनेवाले हैं, इस लिये प्रथम व्रतको पालनेहारे जीव उक्त लिखे हुए पांच अतिचारोंको अवश्य ही त्यागें, तब ही की शुद्धि हो सक्ती है | द्वितीय अनुव्रत विषय । थुलाउ मुसावायाउ वेरमणं ॥ . स्थूल, मृषावाद निरृतिरूप द्वितीय अनुवत है जैसे कि स्थूलमृवाचाद कन्या के लिये, गवादि पशुओंके लिये, भूम्यादिके लिये अथ
SR No.010010
Book TitleJain Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Upadhyaya
PublisherJain Sabha Lahor Punjab
Publication Year1915
Total Pages203
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size6 MB
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