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________________ ( १३४ ) सादि सान्त है अथवा अनादि सान्त है तथा सादि अनंत है वा अनादि अनंत है ? श्री भगवान् उत्तर देते हैं कि हे गौतम! कतिपय जीवोंके साथ कर्मोंका उपचय सादि सांत भी है और कतिपय जीवोंके साथ अनादि सान्त भी है और कतिपय जीवोंके साथ काँका उपचय अनादि अनंत भी है किन्तु जीवोंके साथ काँका उपचय सादि अनंत नहीं होता है। तब गौतमजी पूर्वपक्ष करते हैं कि हे भगवन् ! यह वार्ता किस प्रकारसे सिद्ध है ? श्री भगवान् उदाहरण देकर उक्त कथनको स्पष्टतया सिद्ध करते हैं कि हे गौतम ! इर्यावही क्रियाका बंध सादि सान्त है उपशम मोहमें वा क्षीण मोहनी कर्ममें हो इसका बंध है। और भव्य जीव अपेक्षा *काँका उपचय अनादि सान्त है अपितु अभव्य जीच अपेक्षा कर्मोका उपचय अनादि अनंत * श्री पणवन्नाजी सूत्रमें अष्ट कर्मोंकी प्रकृतिये १४८ लिखी हैं जैसेकि-ज्ञानावर्णीकी ६ दर्शनावाँकी ९ वेदनीकी २ मोहनीकी २८ आयुकर्मकी ४ नामकर्मकी ९३ गोत्रकी २ अंतराय कर्मकी ५॥ और इनका बंध उदय उदीरणा सत्ता इत्यादिका स्वरूप उक्त सूत्रमें वा श्री भगवती इत्यादि सूत्रोंसे ही देख लेना।
SR No.010010
Book TitleJain Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Upadhyaya
PublisherJain Sabha Lahor Punjab
Publication Year1915
Total Pages203
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size6 MB
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