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________________ - १०० ] मसुलिपट्टम ताम्रपत्र સર मलयकुलोद्भव कहा है । न्यानीन पहाड़ीपर उत्कीर्ण मूर्तियांकी पूजाके लिए उमने कुछ दान दिया था । कुरण्डिके गुणवीर भटारका भी इनमे उल्लेख है । उत्कीर्ण मूर्तियाँ महावीर, पार्श्वनाथ, गोम्मटदेव तथा पद्मावती की है । यहींके एक अन्य लेखमे १० वी नदीकी लिपिमें कहा है कि इन मूर्तियो ( तेत्राम् ) का निर्माण वेलि कोगरैनर पुत्तडिगलूने किया था । ] [रि० ना० ए० १९३६-३७ क्र०२५१-५२ पृ० ३४ ] १०० मसुलिपट्टम ताम्रपत्र ( आन्ध्र ) १०वी मत्री, मस्कृत - तेलुगु १ व्याकृष्टरत्नसचितायतशागंचापो वृन्दम् । निर्मम्यन्निव विभा २ ति म कृष्णकान्तिर्विष्णु शिवन्दिशतु चोवनत्रिलोक ॥ (१) स्वस्ति श्रीमता सकलभुवनमस्तूयमानमा ३ नव्यसगोत्राणां हारीतिपुत्राणा कौशिकीवरप्रसादलब्धराज्यानामातृगणररिपालिताना स्वामि- ४ महामेनपादानुष्यातानां भगवन्नारायणप्रसादसमासादितवरवराहलाइनेक्ष णवगीकृनारा निमण्डलानामश्वमेधावभृयस्नानपवित्रीकृतवपुषा चालुक्यानां कु— ६ लमलकरिष्णोस्मत्याश्रयवल्लभेन्द्रस्य भ्राता कुजविष्णुवर्धननृपतिरष्टादशवर्षाणि - ५ ग्रस्सेन्द्रकार्मुक विनीलपयोढ • वगीदेशम पालयत् । तदात्मजो जयसिहस्त्रयस्त्रिंशनम् । तनुजेन्द्रराजनन्दनो विष्णुवर्धनो न- ८ च । तत्सूनुमंगियुवराजः पचविशतिम् । तत्पुन्नी जयमिहस्त्रयो दश । तदचर
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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