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________________ जनशिलालेख-संग्रह [२२९ दशकण्डकावापमानमारण्यक्षेत्र च देवतायतनमशिकृष्टमेक वेश्म च ३० एतत् सर्व सर्वपरिहारपरिगृहीत पानीयपातपुरस्सर दत्तं योस्य चतुर्थपत्र पिछला माग ३१ कोमात प्रमाढाद् वापि हुर्ता म पचमहापातकसयुक्तो भवति अपि चास्मिन्न३२ थें मनुगीता(न) श्लोकानुढाहरन्ति ॥ स्वदतां परदत्तो वा यो हरेत वसुन्धराम् ३३-१८ (नित्यक शापात्मक श्लोक) ३६ कुवलालस्वष्टकारस्य इदम्पटुवस्य पुत्रेण पररसामलिसिताम्पटिका ।। शिवमस्तु [ यह ताम्रपत्र गगवशीय राजा माधव (द्वितीय) के पुत्र कीगण्यघिराज ( अविनीत ) द्वारा राज्यवर्प १२ के कार्तिक शु. १५ को दिया गया था। इसमें यावनिक सघ-द्वारा अनुष्ठित एक अहंदेवतायतन (जिनमन्दिर ) के लिए पुल्लिकर ग्रामकी कुछ भूमि और एक घर दान दिये जानेका उल्लेख है। यह मन्दिर पल्लव राजा मिहविष्णुको माता-द्वारा निर्माण किया गया था। ताम्रपत्रको इदम्पटुवके पुत्र पेरेरने लिया था।] [ए. रि० म० १९३८ पृ० ८०] कोरमंग ( मैसूर) ६वी सटी, सम्कृत प्रथम पत्र सूयांशुश्रुतिपरिपिक्तपकजानां शोमां यद् वहति सदास्य पाद. पनम् ।
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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