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________________ -६५०] जावूर प्रादिक लेख ३५३ मूर्तिकी स्थापनाका उल्लेख है । दूसरेमें बमुवैकवान्धवजिनालयकै त्रिभुवनतिलक शान्तिनायटेवके लिए एक दानशालाके ममर्पणका उल्लेख है।] [रि० मा० ए० १९२६-२७ क्र० ई ३१, ३४ पृ० ३] जावर (पारवाट, मैमूर) कन्नड [इम लेबमें बीचिसेट्टि-द्वारा सकलचन्द्र भट्टारक्को जावूर ग्रामके पुन दानका उल्लेख है। नविलगुन्दमें जयकीतिदेव-द्वारा निर्मित ज्वालामालिनीवमदिके लिए मल्लिदेवने पहले यह गांव अर्पण किया था।] [रि० सा० ए० १९२८-२९क० ई २२८ पृ० ५५] ६४१ कोमरगोप (धारवाड, मैसूर) कन्नड [इस लेखमें त्रिभुनतिलक जिनालयमें आहारदानादिके लिए बालचन्द्र मिद्धान्तदेवके गिप्य पेगडे वासियण्गकी पत्नी चामिकव्वे द्वारा सुवर्णदानका उल्लेन्ब है।] [रि० सा० ए० १९२८-२९ क्र० ई २३० पृ० ५५] ६४२-६५० गुण्डक्रेर्जिगि (विजापूर मैमूर) कन्नड [यहां भग्न मूर्ति-पापाणीपर निम्न नाम बुदे है । (१) देशियगणइंगलेम्वर (वलि) के चन्द्रकीतिदेव तथा जयकीर्तिदेव (२) अपराजिता देवी (2) बृपभयन (४) पातालयक्ष (५) कुबेरयक्ष (E) महानमीयक्षी (७) अनन्तमती (८) चक्रेश्वरी (९) (शा) न्तनाथस्वामी ] [रि० मा० ए० १९२९-३० क्र० ई १६-१७ पृ. ६६ ]
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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