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________________ -५८९ ] कारकल आदिके लेख ३७१ [ यह लेख एक जिनमूर्तिके पादपीठपर है और इसका आधा भाग अस्पष्ट हो जानेसे अचूरा हुआ है। इसमें किसी गणके एक आचार्यका उल्लेख रहा है । ] [ ए०रि० मं० १९२९ पृ० १२६ ] ५८७ कारकल (मैसूर) संस्कृत [ यह लेख गोम्मट मूर्तिके सम्मुख ब्रह्मस्तम्भके समीप उत्कीर्ण पादुकाओंके पास है । लिपि आधुनिक है - (मूल) श्रीगणधरपादम् । ] [रि० इ० ए० १९५३-५४ क्र० ३३८ पृ० ५२ ] ५८८ कोप्पल ( रायचूर, मैसूर ) कन्नड [ इस लेखमें चावय्य द्वारा जटासिंगनन्दि माचार्यको पादुकाओको स्थापनाका उल्लेख है । ] [रि० इ० ए० १९५४-५५ क्र० १६१ पृ० ४१ ] ५८६ वादंगट्टि ( धारवाड, मंसूर ) कन्नड [ यह लेख बोम्मिसेट्टिके समाधिमरणका स्मारक है । ] [रि० इ० ए० १९४७-४८ क्र० १६९ पृ० २२]
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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