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________________ ३६२ जैनशिलालेख-सग्रह ८ वत्तर तेकलनाड एलपत्तारु ढ-- [ इस लेखका ऊपरका और दाहिना भाग टूटा है। नेन्दियडिगल् वाचार्यको कुछ भूमि दान दिये जानेका इसमें उल्लेख है।] [ए. रि० मै० १९२६ पृ० ८३] तोललु ( मैसुर) काड १ श्रीमत्परमगंभीरस्यावाटा२ मोघलाछन जीयात् त्रैलोक्यना३ यस्य शासनं जिनशासन । स्वस्ति यमनि४ यमस्वाध्यायगुणसम्पन्नरप्प अभयच५ न्द्रदेवरु सर्गगामिगलाद परोक्ष६ यममागल् पभावतियक्क माडिसिद सास७ न ॥ अरेवेसनागिरह वसदिय माहि८ सिटर देवर मनेय परिसूत्रट गट्टु कष्टिहै यिसिदरु मन्य नाटि नडुम्मरनुमं नट१० रु इनिसक यिक्कि पूजिसिढ गाणाप्प११ च । इन्तपुदक्के साक्षि मुहगण्डनु मास१२ गवुण्डनु सम्मडिय रं । विष्टियण ने१३ मणनु ईस्तानकोडेयरु। [ इस लेखमे कहा है कि आचार्य अभयचन्द्रकी मृत्यु होमेपर उनकी शिष्या पावतियक्काने एक अधूरे जिनमन्दिरको पूर्ण किया। इस कायम ७० गद्याण खर्च हुए । इस मन्दिरके व्यवस्थापक विट्टियण तथा नेमण थे । मुद्दगवुण्ड तथा भासगधुण्ड इसके माक्षी थे।] । [ए० रि० मै० १९२६ पृ० ४२]
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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