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________________ प्रस्तावना १३१९में कुछ स्थानीय अधिकारियो-द्वारा ऐसे ही दानका उल्लेख मिलता है (क्र० ३९१ )। (भा १) कलचुर्य वंश-प्रस्तुत सग्रहमें इस वंशका उल्लेख सात लेखोमें है। इनमें पहला लेख सन् ११५९ का है तथा इसमें किसी सेनापति-द्वारा एक जैन आचार्यको दान मिलनेका वर्णन है (क्र० २५१)। यह लेख राजा विज्जलके समयका है। इस राजाका उल्लेख चार अन्य लेखोमें है (क्र० २५६, २६०-२६२)। ये लेख सन् ११६१ से ११६८ तक के है तथा इनमे स्थानीय अधिकारियो-द्वारा जैन आचार्योको मिले हुए दानीका वर्णन है। इस वशके अन्तिम दो लेख राजा सोविदेवके राज्यके सन् १९७३ तथा ११७५ के है (क्र. २६७, २७०) तथा इनमें भी स्थानीय व्यक्तियोंके दानोका उल्लेख है। (आ १० ) यादव वश-देवगिरिके यादवोका उल्लेख प्रस्तुत सग्रहके १५ लेखोमें है। इनमें पहला लेख (क्र० ३२६ ) राजा सिंहणके समय सन् १२३० में लिखा गया था तथा एक मन्दिरके लिए कुछ दानका इसमें वर्णन है । इस राजाके समयके तीन अन्य लेखोमें (क्र० ३२८, ३२९, ३३० ) तीन महाप्रधानो-प्रभाकरदेव, मल्ल तथा वीचिराज-द्वारा जिनमन्दिरोके लिए दानोका वर्णन है। ये लेख सन् १२४५ तथा १२४७ के है। राजा कन्हरदेवके राज्यके चार लेख है (क्र० ३३४, ३३६, ३३७, ३३९)। ये लेख सन् १२५७ से १२६२ तकके है इनमे तीन दानलेख है तथा एक समाधिलेख है । राजा महादेवके समयके तीन लेख है (क्र. ३४०, ३४१, ३४४), ये सन् १२६५ तथा १२६९ के है तथा तीनो समाधिमरणके स्मारक है। राजा रामचन्द्रके समयके चार लेख है ( ऋ० ३५२, ३५४, ३५५, ३५९), ये सन् १. पहले संग्रहम इस वंशके तीन लेख है (ऋ० ४०८, ४३५, ४३६), २. पहले संग्रहमें इस वंशके ९ लेख है, जिनमें पहला (क्र. ३१७) सन् ११४२ का है।
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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