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________________ -420] क्रन्दै आदिके लेख ३४७ २ रक्तुं नीलगिरि हेलाचार्य पाटपूजे प्राडिवारत्न तोल्म् मेर्पाडि आलयचिन् श्रीराश्वनाथम्बामियु आलामा (लि) निचम्मणैयु मेर्पाडि स्वर्गपुरजनल एडुत्तकोण्ड पोय् पूजिप्पड ( 1 ) इन्द शामनमनम्नमेनदेव (नाले) लुडपड (11) [ ए० इ० २९ पृ० २०२ ] Ke करन्दै ( उत्तर अर्काट, मन्त्रान ) शक १६६९ = सन् १७४८, तमिल [ यह लेख्न ज्येष्ठ नृ० ५, शुक्रवार, शक १६६९ को लिखा गया था । मुनिगिरि स्थित कुन्युनाथस्वामी के मन्दिरके गोपुरका जीर्णोद्धार अगस्तियप्प नायिनाने किना ऐना इसमें कहा गया है । ] [ रि० ना० ए० १९३९-४० क्र० १३६ ] ५२० मूडविदुरे (मैमूर ) शक १६७६ = सन् १७५७, कन्नड [ विद्यानगर ( विजयनगर ) के राजा विजन सदाशिव महारागके अधीन नोदे प्रदेशके धामक अरमप्पोडेयके पुत्र इम्मडि अरमप्पोडेयने वेणेगावे नामकी कुछ जमीन अपने गुरु चारुकीति पण्डितदेवको अर्पित की ऐना इन ताम्रपत्रमें उल्लेख है । तिथि मार्गशिर शु १ शक १६७९, राजन संवत्पर । ] [रिमा ए १९४० - ४१ पृ २४ क्र ए६ ]
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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