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________________ -५०.] हुमच आदिक लेख ४३८ हुमच (मैमूर) १६ची मढी, कन्नड १ श्रीवोम्मरसनु रूपबतिनिढनू [ यह लेख पार्श्वनाथत्रमदिमे स्थित क्षेत्रपालमूतिके पादपीठपर १५वी मढीको लिपिमे है। इसमें मूर्तिके निर्माताका नाम वोम्मरम दिया है। ] [ए० रि० मै० १९३४ पृ० १७७ ] ४६४ सेतु (शिमोगा, मैमूर) १६वी मढी, कन्नड , स्वस्ति श्रीगुम्भय सेटियर वस्निय श्रीवर्धमानस्वामिय सनि धानढल्लि गणपणमेटियर मग सघय्यसेटियरु तमगे पुण्यात वागि प्रतिष्ठे मादिमिट अभिनन्दनतीयश्वरनिगम• गल महा श्री श्री श्री श्री श्री [इम रेखमें मघय्य सेट्टिद्वारा अभिनन्दन तीर्थकरकी इस प्रतिमा की स्थापनाका निर्देश है। इम समय गुम्मयसेट्टिकी वसतिके वर्वमानस्वामी उपस्थित थे। लिपि १६वी सदीको प्रतीत होती है।] [ए० रि० मै० १९४४ पृ० १६६ ] ५००-५०१ तिरुनिडंकोण्डै ( मद्रास) १६वी सदी, तमिल [ इस लेखमें एक पद्यमे कोण्डमल निवासी गुणवहिरमुनिवन् (गुणभद्रमुनि ) की प्रशसा की गयी है जो दक्षिणप्रदेशमें तमिल और सस्कृतके २२
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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