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________________ -४९१ ] वीलिगि श्राटिके लेख ४६० रत्नत्रयवसदि वीलिगि, (उत्तर कनडा, मैसूर ) १६वीं सदी (सन् १०८७ ) ३३५ [ इम लेखमे मूलमंघ - देसिगण - पुस्तकगच्छके श्रवणवेलगुल मठके चारकीर्ति पण्डितका उल्लेख किया है । इन्हें रायराजगुरु, मण्डलाचार्य, वल्लालराजीवरक्षापालक आदि उपाधियाँ प्राप्त थी । इनकी परम्परामे श्रुतकीर्ति पण्डित हुए। इनकी गिष्यपरम्परा इम प्रकार थी - श्रुतकीर्ति - विजयकीतिश्रुतकीति (द्वितीय) - विजयकीर्ति ( द्वितीय ) ठाकलक विजयकीर्ति (तृतीय) - अकलक ( द्वितीय ) - भट्टाकलंक । भट्टाकलकदेवका समय शक १५१० =मन् १५८७ दिया है । मगीतपुरका लोकप्रयुक्त नाम हाडुवल्लि है । यहांके राजा इन्द्रभूपालको विजयकीर्ति ( प्रथम ) की कृपासे मिहामन प्राप्त हुआ ऐसा कहा गया है। विजयकीर्ति (द्वितीय) की प्रेरणासे पश्चिम समुद्र तटपर भट्टकल नगरको स्थापना हुई थी। ] [ ए० इ० २८ पृ० २९२ ] ४६१ जि० दक्षिण कनडा ( स्थान नाम अज्ञात ) शक १५१३ = सन् १५६१, कन्नड [ यह ताम्रपत्र शक १५१३ स्वर मवत्मरमे किन्निग भूपालने दिया था। इसमें एक जैन मन्दिरके लिए कुछ भूमिदानका उल्लेख है । ] ( इ० म० दक्षिण कनडा २ )
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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