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________________ ३२९ -१८५] कारकल भादिक लेख स्थापना जगतापिगुत्ति निवामी वायिनेट्टिके पुत्र बुन्गेट्टिने गक १५००, बहुधान्य नवनरम की ऐना इसमें उल्लेख है । स्तम्भके दूसरी और मस्कृत भापा और कन्नड लिपिमें इमी वर्णनका लेख है। इसमें बुट्टिको महानागकुलका कहा गया है।] [रि० मा० ए १९३७-३८ ऋ० ५१७-१८ पृ० ५७-५८] ४८४ कारकल (द० कनडा, मैमूर ) शक १(५).१= सन् १५८०, क्न्नड [इम लेखकी तिथि कार्तिक शु० १, गक १(५)०१ है। प्रारम्भ धीमत्परमगम्भोर ' 'आदि ग्लोकसे है। अन्य विवरण लुप्त हुआ है।] [रि० इ० ए० १९५३.५४ क्र० ३३७ पृ० ५२] ४५ सेतु ( शिमोगा, मैसूर) गक १५०५=मन् १५७३, कन्नड १ स्वस्ति श्रीजयाभ्युदय शालिवाहनशक वरप १००५चित्रमानु संबस्मरट भाद्रपट सुद्ध १० शुक्रबारदंदु क्रूरु नाड चैपल्लिय तिम्म गोहरु यिवल्लिय नायक्क गौडर जहिगांढर मग सेहिगौडर आ ममस्त श्रावकर मह मुंतागि मेनुविन बमति श्री आदितीयश्वररिंगे माहिस्त लोहन २ प्रमावलिगे आ समस्त जनगलिगे मंगल महा श्री श्री श्री विरपयनु माडिदुदु [ यह लेख आदिनायमूतिके पादपीठपर है । इस मूर्तिको स्थापना भाद्रपद शु० १० शक १५०५ के दिन हुई थी। स्यापक चैपल्लि ग्रामके तिम्मगौड तथा यिबल्लि ग्रामके सेट्टिगोड थे।] [ए. रि० मै० १९४४ पृ० १६७]
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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