SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 311
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२६ जैनशिलालेस-सग्रह [ [यह ताम्रपत्र शक १४७९ में लिखा गया था। उस समय विजयनगरसाम्राज्यके अधिपति सदाशिवराय थे तथा रामराज उनके प्रधान सेनापति थे । इस साम्राज्यके बारकूर तथा मगलूरु प्रदेशपर केलाडि सदाशिव नायककी नियुक्ति की गयी थी। इस प्रदेशमे काप नगरका अधिकारी मद्द हेगडे था । इसने धर्मनाथ तीर्थकरको पूजा आदिके लिए मल्लाए गांवमे कुछ जमीन दान दी जिसकी आय ८० वराह थी (वराह उस समयकी रौप्यमुद्राकी मना थी)। यह दान अभिनव देवकीतिक प्रशिष्य तथा मुनिचन्द्रके गिण्य देवचन्द्रके उपदेशसे दिया गया था। इसके पहले मूलमघ-काणूरगण-तिन्त्रिणोगच्छके भानुमुनीश्वरकी प्रशसा की गयी है। देवचन्द्र भी काणूरगणके ही थे । अन्तम दानकी रक्षाके लिए जो शाप दिये है उनमे श्रवणवेलगोलके गोम्मटेश्वर, कोपणके चन्द्रनाथ तथा गिरनारके नेमिनाथकी मूर्तियाका उल्लेख किया है ] [ए० इ० २० पृ०८९] ४७७ चिप्पगिरि (जि० वेल्लारी, मैसूर ) शक १२%Dसन् १५६०, कन्नड [इस लेख में भादवानीके विशालकीतिगत तथा चिप्पगिरिक श्रावकोद्वारा चतुर्थमुनीश्वरकी वन्दनाका उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९४४-४५ ई ७४ ] ४७ मूडवितुरे (जि० दक्षिण कहा, मैसूर) शक १४८५-सन् १५६३, कन्नड [इस ताम्रपत्रमे विदुरे नगरकी चण्डोग्न पारिश्वतीर्थकर वसतिके लिए शकरसेट्टि ऊर्फ विरणन्तर-द्वारा उसकी वहन शकरदेवीके आग्रहसे कुछ
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy