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________________ -४७६] काप ताम्रपत्र रेख २. न्य (ो)दायवीर्यवर्य(मा)धुर्यगामीयनयविनयसस्यशाचायन नगुण• गणनूरनरत्नामरणगणकिरणोद्योनिनमरताटिमक्ल (पु)राणपुरप न्मप्प तिरमलरमराठ महंग्गडेयर अवर नालिनवर गणपणमावनरु कापिन राज्यव•८ नु प्रतिपालिसुतिह कालदल ॥ स्वस्ति श्रीमदायराजगुरु मढला चार्य महा२९ बाढवाढीश्वर राज्यवाटिपितामह सकलविद्व(ज)नचक्रवर्तिगलं इस्यायनकथि३. रतावलीविराजमानर काणगणाग्रण्यरुगलुमप्प श्रीमदमिनव३, देवकीर्तिदेवरुगल शिष्यरु मुनिचदंबरगल (अ)वरगल गिप्यरु देवचढे३. बरगलु तम्म गुरु मुनिचद्रवरुगलिगे स्वर्गापवर्गक कारणबागि कापिन३३ लु धर्मचनु माठयेत्र चिटि तिरमलरमराद महंग्गडयरु ३५ इयु भवर नालिनवरु गण(प)णमामतर कूडयु कापिन हलर महायटिं३. द धर्म बॉटु क्षेत्रवनु कोढयेक यदु चित्तमलागि भवरगलु धर्म३६ परिणामस्वरूपवने बुलवराट कारण गुरुमक्तियिद तम्म सीमेय३७ लुम(ला)रम्न (यू)रोलगे पनु(व)ण दिक्निलु कल तोपतिना बाल्कयल अगलिं३८ द वोलगे वेटिन गहेल्क बीज यल्ल मृवत्तर लेक्कद वत्त मूई २ मत्तम
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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