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________________ २४ जनशिलालेख-सग्रह में दसवी सदीके उत्तरार्धमें अम्मराज २ द्वारा विजयवाटकके जिनमन्दिरके लिए एक गांवके दानका वर्णन है। ___कल्याणीके चालुक्य राजाओके लेख मस्यामै सर्वाधिक-५८ है । लेसोकी अधिकताके कारण हम यहाँ उन लेसोका ही उल्लेख करेंगे जिनमें इस वंशके सम्राटोका जैन धर्मकासि साक्षात् सम्बन्ध आया था- जिनमे सिर्फ उनके राज्यकालका उल्लेख है उनका निर्देश सूची में होगा ही। इस वशके लेखोमे पहला (क्र० ११७ ) सन् १००७ का है तथा इसमें सामन्त नागदेवकी पत्नी-द्वारा एक जिनमन्दिरके निर्माणका वर्णन है। यह लेख सम्राट् सत्याथय आहवमल्लके समयका है। मन् १०२७ के एक लेखमें (क्र. १२४ ) सम्राट् जयसिंह २ की कन्या सोमलदेवी-द्वारा एक मन्दिरको कुछ दान मिला था ऐसा वर्णन है । सन् १०३२ के एक लेखमै सम्राद जगदेकमल्ल-द्वारा एक मन्दिरको दान मिलनेका वर्णन है (क्र. १२६ )। इस मन्दिरका नाम ही जगदेकमल्ल जिनालय था। जगदेकमल्लकी बहा अक्कादेवीने सन् १०४७ में गोणदवेडगि जिनालयको कुछ दान दिया (क्र. १३४) । सन् १०५५ के एक लेखमे आचार्य इन्द्रकीतिको त्रैलोक्यमल्लकी सभाका आभूपण कहा है। (क्र० १४१ )। इस वंशका अन्तिम लेख (क्र० २०४ ) सन् १९८५ का है तथा इसमें सोमेश्वर ४ के राज्यकालमें एक मन्दिरको कुछ दानका वर्णन है। (भा ७) चोल वश इस वशका उल्लेख कोई २५ लेखोमे है। इनमें पहला ( ऋ० ८२ ) सन् ९४५ का है तथा इसमें राजा परान्तक १ के समय एक कूपके निर्माणका वर्णन है। सन् ९९९ के एक लेखमे , पहले सग्रहमें इस वंशके कई लेख है जिनमें पहला (क्र. १६६) सन् १६० के आसपासका है। २. पहले संग्रहमें इस वंशके तीन लेख (क० १६०, ११, १७४) हैं।
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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