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________________ २४८ जैनशिलालेख-संग्रह [३१९५४ हरि नैऋत्यदल्लि एलेदोंट हास्वगोल मत्तरोदु कम्मवेल्नूररुवटु तेकणि बढ मुगुलिय हल्लवट तकण हेले प५५ हुवला हल्ल बडगरूरुबयाविय वोटं। मूडल मूलस्थानदेवर तोट । आग्नेयकोणोरुल नहुवण देवालयद तॉट । मा ए५६ लेय वोटदि तेकला हल्लटिं मूडल हुदोर्ट कम्म नालनूरु ॥ई सामेगलोलेल्ल नह कलगल ॥ भोसेदो शासनमार्गलिं नृपरदार पालिप्परी ५७ धर्ममं निसद तत्सुकृतात्मरात्मबलमित्रप्रेयसीगोत्रपुत्रसमृद् स्वदोलोदि विश्वधरेयं निष्कंटक माडि सतोसदि राज्यमनप्पु केर पडेव५८ दीर्घायुम श्रीयुमं ॥ एनिसुं लोमदे शासनक्रममनावों मोरिद तदुरात्मनसेव्याचरणान्वित पलिगे पैशून्यक्के पापक्के माजन नल्पा५६ यु रुनाविल रिपुहृतामो:तल दुर्बल घनदुःखासदनागलु नरकदोलोल काहुगु मूडगु । सामान्योय धर्मसे६० तुपाणां काले काले पालनीयो भवद्भिः। म नेतान् भाविनः पार्थिवेदान भूयो भूयो याचते राममदः ॥बटता परदत्त ६१ वा यो हरेत वसुन्धरा पष्ठि वर्षसहस्राणि विष्ठायां जायते कृमि ॥ प्रहतारिवनकातवीयसचिव श्रीचीचिराज यशोमहि३२ त पेलिमेनल के शासनमनोलपि बालचई गुणाग्रहि विद्वजन समतस्फुटपढार्यालक्रियासकुलावहमपन्तिरे पेलनिन्तु कवि. कन्दप धाधीश्वरं ॥ [म लेसका माराश जै०शि०स० भाग ३ मे क्रमाक ४५४ में दिया है। किन्तु उस समय मूल लेख प्राप्त नहीं हो सका था। यह लेख भी पहले लेपके ही दिन अर्थात पीप शक्ल २ शक ११२७ को लिखा गया
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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