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________________ २३४ जनशिलालेख संग्रह [३१३[इम निसिविलेउमै मूलमघ-कुण्डफुन्दान्चय-कार गणक माधवचन्द्र देवकी शिष्या तथा गोकवेकी कन्या नागके ममाधिमरणका उरलेख है। लेखकी लिपि १२वी सदीकी है।] [ए. रि० मे० १९४१ पृ० १९२] ३१३ हम्पी ( वेल्लारी, मैसूर) कन्नड, १२वी सदी [ यह लेस एक भग्न स्तम्भपर १२वी सदीकी लिपिम है। इसमें गोरलाचार्य, उनके शिष्य गुणचन्द्र तथा उनके शिष्य इन्द्रनन्दि, नन्दिमुनि तथा कन्तिका उल्लेख है। [रि० इ० ए० १९५५-५६ ० ३३५ पृ० ५०] ३१४ कलकत्ता ( नाहर म्यूजियम ) कनढ, १२वी सदी १ टेमायपगलाणन्तियनापि निमित्त२ बागि माडिसिट प्रतिष्ठे [यह लेख पीतलको चौवीम तीर्थकरमूर्तिके पिछले भागपर पुदा है। यह मूर्ति देमायप्प नामक व्यक्तिने अनन्तप्रतकी समाप्तिके ममय स्थापित की थी। लिपि १२वी मदीकी है। लिपिसे पता चलता है कि इसका निर्माण कर्नाटकमे हुआ था।] [ए० रि० म० १९४१ पृ० २५० ]
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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