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________________ -३०८ ] गोरुरका लेख २० कुलवधु ता भूविनुन श्रीने नेलेयेनिप्प गर्नयर पलं पेण्डितने वर्षर २३१ २१ बोलु ॥ आतन किरिय पेण्डति रवियं पोस्वलु पिपत्तिचरियोस् अतियच्चे २२ प्रल्वलनिधि तत यशोवल्लरिय मतिहीनर् अदेनु वण्णिपर् वाय ॥ अवरीवर गु ... २३ (रु) गए अवर भुवमसनाराध्य र सिलगुणगणनिलयर कढि वर नयकीर्ति २४ देवसिद्धान्तेशर ॥ आ महानुभावनधगियरवमान कालडांलु ॥ बोविसुन जिनपढनं वा २७ व सिद्धपदमन् अक्षय पढमं विनुतं मुनिपदमं वाचवे वेग्गडतियर सुरतिय २६ ... परम जिनेश्वर पत्रपकरहमनानंददि नैनेयुतागलु पिरिडाँड भक्तिय २७ तियं बाचियवन् एडिदल् भगलु ॥ अवर परोक्षदोलू भाई सविनयति केल २८ यिन्ति कल्ल भुवनजन्त्ररिये निरिसिटल अविचलमप्पन्तु चंद्रतारं वरं ॥ [ इस लेखमें किमुवल्लि ग्रामके शासक सत्यवेगाडेका उल्लेख है । यह हैरियवासेवेगडे तथा उनकी पत्नी निजिकब्वेका पुत्र था । इस सत्यबेगडेकी पत्नी वाचवे थी । वह कच्छवेगडेकी पुत्री थी । इसके गुरु नमकीर्ति सिद्धान्तदेव थे । लेखमें बाचवेके देहत्यागका उल्लेख है जो भम्भवन. नत्यवेगडेकी मृत्युके कारण किया गया था । लेखकी लिपि १२वी सदीकी प्रतीत होती है । ] [ ए०रि० मै० १९४३ पृ० ७१ ]
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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