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________________ २०९ -३००] भम्मिनमावि भाटिक लेस ३०४ अम्मिनभावि ( धारवाड, मैमूर ) [ रह लेख वर्षमानमूतिके पादपीठपर है। बहुत अस्यप्ट हुआ है। लिपि १२वी सदीकी है।] [रि० इ० ए० १९५२-५३ ० ७० पृ० ३४] ३०५-६ मण्दर (धारवाड, मैमूर) [यहाँ १२वी सदीकी लिपिमें दो लेख है जो जैनोने सम्बन्धित प्रतीत होते हैं। [रि० इ० ए० १९५२-५३ क्र० ९४-९५ पृ० ३६] सालिग्राम (मैसूर) क्नड १२वीं सदी [रह लेन्ब अनन्तनाथकी मूतिके पीठपर है। मूलनध-बलात्कारगणके मारनन्दि सिद्धान्तचक्रवतिके गिप्य शम्बुदेवकी पत्नी वोम्मवे-द्वारा अनन्तप्रतको समाप्तिपर यह मूलि स्थापित की गयी थी। लिपि १२वी मदी की है। [ए. रि० मै० १९१३ पृ० ३६] गोसर ( हासन, मैमूर ) कन्नड़, १२वी सही १ नो श्रीमनु परमगंमारस्याद्वादामोधलांछन()जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासन जिनशासन(1)
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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