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________________ २०. जैनशिलालेख-सग्रह [२६९-- . सामान्यीय धर्ममेतर्नृपाणा काले-काले पालनीयो मवनि सर्वानेवान माविन. पार्थिवेन्द्रान भूयो भूयो याचते रामचंद्रः । स्वस्ति श्रीमन्महामंडलेश्वर त्रिभुवनमल्ल वीरगग बलालदेवरु टोरसमुद्रदलु सुखसंकथाविनोददि राज्य गेयुत विरलु उत्पादपयोपजीवि महाप्रधान सर्वाधिकारि हेग्गडे वलय्य शककालं सासिरद तोमवेदनेय विजयसंवत्सरट कार्तिक शुद्ध पचमि सोमवारददुः कालबोवनहलिसहितवागि बोगवटियलल्ल समस्तसुकव श्रीकरणजिनालयद श्रीपाश्वेदेवर भष्टविधार्चनगेंदु श्रीमटक्लंकदेव(सिंहा.) ८ हासनस्थितरप्प श्रीपमप्रमस्वामिगलगे धारापूर्वक माडि कोहरु (इस लेखमे होयसल राजा वल्लालके महाप्रधान हेगडे वल्लव्य-धारा भोगवदिके पार्श्वजिनालयके लिए अकलकदेवकी परम्पराके पद्मप्रभ स्वामीको कुछ करोका उत्पन्न दान दिये जानेका निर्देश है। यह दान कार्तिक शु० ५, शक १०९५, विजयसवत्सर,के दिन दिया गया था। हेगड़ें वल्लय्य महाप्रवान माधिराजका भाव ( ससुर या चाचा था) [ए. रि० म० १९४० पृ० १५० ] २६६ सोगि (जि० बेल्लारी, मैसूर) १२वी सदी, कन्नड (वीरप्पक घरके आगे एक शिलासण्टपर) [ इस लेखमे होयसल राजा विष्णुवर्धन वीरवल्लाल-द्वारा कातिक कृ० ५, गुरुवारको किसी जैन सस्थाको भूमिदान दिये जानेका निर्देश है। [इ० म० वेल्लारी २३७ ]
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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