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________________ - २४१ ] शृंगेगे श्रादिके लेख शृंगेरी (मं) शक १०७१ = सन् ११२०, कन्नड श्रीमनारमगं मीरस्यादवादानीघलां छनं जीयान त्रैलोक्यनाथम्य नामनं जिनशासन स्वस्ति श्री (म) नु मक्त्रन्पंगलु १०७१ ने प्रमोड़naree afterसमासद शुद्ध सप्तमि ร २ 2 ४ ५ मदन्दु धोकारगण मृल्मघ ६ पुस्तकगच्छद्र हरिय ७ मगल ર [ यह लेख पार्श्वनाथदमदिये मुत्रमण्डपके एक पापाणपर हैं । वैनास ०७, म १०७१, प्रमोदून नवन्मर इम तिथिका तया मूलवध - काणूरगग-पुन्तक्गच्टका इसमें है । लेत्र अस्पष्ट होनेने इनका उहेग यदि विवरण ज्ञात नहीं हो नक्ता । ] [ ए० दि० मं० १९३८ पृ० ११३ ] २४१ अरसीवीडि ( बिजापूर, मैसूर ) चालुक्यविक्रम वर्ष ७६ = सन् ११५१, कन्नड [ इन लेखमें चालुक्य राजा त्रैलाक्यमल्लदेवके नामन्त वीरचाउण्डरम तथा उनका पत्नी देमलदेवी द्वारा पोप व०-२, बुधवार, चालुक्य विक्रम वर्ष (६) के दिन मूलसघ - देशियगणके आचार्य नयकोति मिद्धान्तदेवके शिप्न नेमिचन्द्र पण्डितदेवको कुछ दान दिये जानेका उल्लेख है । ] [ रि० स० ए० १९२८-२९ क्र० ई ३३ पृ० ४३ ]
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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